गज़ल
ना करो तुम हिसाब रहने दो,
अच्छी हैं या खराब रहने दो
दिल का क्या है थोड़ा पागल है,
इसकी बातें जनाब रहने दो
चलो काँटों की बात करते हैं,
आज ज़िक्र-ए-गुलाब रहने दो
जीने के लिए ज़रूरी है,
मेरी आँखों में ख्वाब रहने दो
पढ़ना है तो कोई चेहरा पढ़ो,
ये मोटी-सी किताब रहने दो
छेड़ो ना किस्सा-ए-मुहब्बत तुम,
आएगा फिर सैलाब रहने दो
— भरत मल्होत्रा