लघुकथा – सेठ का दान
सेठ कंजूमल ने बाबा देवराम के चरणों में पूरे सात लाख का चेक अर्पित कर दिया | बाबा देवराम ने भी फटाक से एक फूल माला सेठ कंजूमल के गले में लटका दी | सारा हॉल तालियों की गडगडाहट से गूँज उठा |
अब सेठ कंजूमल बड़ा हल्का – हल्का महसूस कर रहे थे | वे सोच रहे थे, चलो अब मेरे सारे पाप धुल जायेगें, धर्म – कर्म के लिए इतना बड़ा दान जो देदिया | स्वर्ग जाने का परमिट पक्का… |
कार्यक्रम खत्म हुआ, सेठजी घर जाने के लिए गाडी में बैठ गये पर गाडी स्टार्ट न हुई… उनके ड्राइवर ने बहुत कोशिश की पर गाड़ी स्टार्ट न हुई | थक हार कर सेठजी ने रिक्शा पकड़ लिया | करीब आधे घंटे की कड़ी मेहनत – मशक्कत के बाद बूढ़े रिक्शे वाले ने सेठ को उनकी हवेली तक पहुंचा ही दिया |
‘ कितना हुआ…? ‘ सेठ ने पूछा |
‘ साब जी…! बीस रूपया आप देदीजिए… ‘ बूढ़े रिक्शे वाले ने अपने माथे का पसीना पौंछते हुए कहा |
‘ बीस रूपये… इतनी सी दूरीके, लूट मची है का… ‘ सेठजी खा जाने वाली कड़कती आवाज में गुर्राये |
‘ अरे साब जी ! आप गुस्सा काहे होते हो पन्द्रह रूपये दे दीजिए| ‘ बूढा रिक्शा वाला खुशामदी लहजे में गिड़गिड़ाया |
सेठ कंजूमल ने दस का सिक्का रिक्शे की सीट पर उछाला और हवेली के बड़े- से गेट के अन्दर समा गये | बेचारा रिक्शा वाला देखता रह गया…. |