कविता

तुम्हारी मुहब्बत में….

तुम्हारी मुहब्बत में……
एक किताब सी हो गई हूं मैं
हर कोई देखकर चेहरा मेरा
पढ़ लेता है हाले-दिल व्या…..

बदले -बदले से अंदाज मेरे
बेवजह हंसती मुस्कुराती हूं
खोई-खोई सी रहती अपनेआप में
होश हवास सब गुम हुए जैसे
कोई और भी है जमाने में…..
तुम्हारी मुहब्बत में……
एक किताब सी हो गई हूं मैं

मुहब्बत में जुवां खामोश
अहसास बोलती है….
दिल के राज आँखें खोलती है
कुछ कहो न कहो तुम किसी से
महक प्यार की…..
सबको लग जाती है

बड़ी मुश्किल है चाहत में
कुछ भी छुपाना…..
उत्तेजनाएं दिल की बेकाबू रहती है
जितना दबाना चाहो इसे
उतना ही मचलती है
तुम्हारी मुहब्बत में…..
एक किताब सी हो गई हूं मैं….

*बबली सिन्हा

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