कविता

सवाल खुद से

 

तन पर कपड़े
जेब में माया
क्या इन्ही में
खुबसुरती का
जग समाया?
देख फरेब खुद में
मैं हूँ खबराया
पुछा सवाल सभी
से यही आज
मैं ना शरमाया
नंगे बदन सड़क पर
देख कर बच्चे
मन मुरझाया
ये राग गरीबी का
आज भी गाया
कल भी गाया
बचपन ने इनके
अल्हड़पन में
बोझ है उठाया
दुनिया कह रही
क्यों करे सोचकर यह !!
हम अपना वक्त ज़ाया
डर लगा देख कर
मुझे अपना ही साया
किया दिखावा
उम्र भर दुनिया में
नंगे बदन आग हवाले
देख न कुछ कमाया
तन पर कपड़े
जेब में माया
क्या इन्ही में
खुबसुरती का
जग समाया?

 

प्रवीण माटी

नाम -प्रवीण माटी गाँव- नौरंगाबाद डाकघर-बामला,भिवानी 127021 हरियाणा मकान नं-100 9873845733