लघुकथा

लघुकथा : तमाचा

“नवल, मुझे आज प्रिसिपल के घर ज़ा कुछ पेपर पर दस्तखत करवाने हैं, फिर नई जगह हाजरी देनी है| नहीं तो मेरी पिछले मास की तनखाह रुक जायेगी|” नवल और नमिता के विवाह को थोडा समय हुआ था| दोनों घर में पूजा होने की वजह से काफी मेहमाननवाजी में लगे रहे| नमिता की दोनों ननद तो वहीँ रुक गई थीं| उनके बच्चे छोटे थे, जो सामान उठा इधर-उधर फेंक सारे घर में खेलते घूम रहे थे| नमिता ने सोचा, मेरे जरूरी पेपर और सारा कमरा बिखरा पड़ा है, मै ताला लगा चाबी देवर को दे जाती हूँ| नवल ने पहले तो नमिता के साथ जाने से इंकार कर दिया, फिर बोला, “इस घर में ताला नहीं लगेगा, दूसरा तुम अपना काम खुद कर सकती हो| मुझे बहनों का साथ छोड़ कहीं नहीं जाना|” नमिता ने बहुत कहा, “आज मुझे आने को कहा है प्रिसिपल ने, फिर उसे कहीं जाना है |” नवल मुश्किल से मान गया|

जब वापिस आये जो देखा सबके मुँह बने हुये थे और सास बोली, “नमिता, तुम्हें शर्म आनी चाहिए घर में बच्चे आये हुये हैं, तुम मटरगश्ती करती पति के साथ घूम रही हो, रात के खाने की तुझे कोई चिंता नहीं| कामचोर कहीं की|” नमिता ने कमरा खुला देखा, गुस्से में नवल से बोली, “आप देखो मेरा सारा सामान बिखरा है, मेरी लिपस्टिक, मेकअप का सामान देखो क्या किया है|” नवल ने आव देखा न ताव नमिता को थपड रसीद कर दिया, “जवान चलाती है, चुपचाप जा काम सम्भाल और बड़ों का सम्मान करो|” सुबकती नमिता अपने मन के भावों को दबा सोच रही थी “शायद यही शादीशुदा जीवन है, पुराना कर्जा सा जन्मों का उतारना है|”

रेखा मोहन

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]