लघुकथा – अपना–पराया
सरकारी स्कूल दारपुर की हिन्दी टीचर नेहा का बेटा अभि शहर के नामी प्राइवेट स्कूल में पढ़ता था | उसकी हिन्दी की टीचर ने उसकी हिन्दी की नोट बुक पिछले दो दिन से चैक नहीं की थी | आज नेहा सीधे अपने स्कूल जाने की बजाय बेटे के स्कूल पहुँच गई | बेटे की नोट बुक प्रिंसिपल की मेज पर पटक-पटक कर सवाल-जवाब करने लगी | प्रिंसीपल ने हिन्दी टीचर को दफ्तर में बुलाकर खूब डांट पिलाई | नेहा प्रिंसीपल को ऐसे निक्कमे टीचर निकाल कर अच्छा टीचर रखने की सलाह देकर दफ्तर से सीधे अपने स्कूल आ गई | बच्चे अपनी नोट बुक्स लेकर कह रहे थे – ‘मैडम हमारी नोट बुक्स चैक कर लो |’ मैडम ने कहा –‘बच्चो आपकी नोट बुक्स कल चैक कर दूँगी | आज मेरा सिर दुःख रहा है | बाहर से गुजरते हुए मैडम वीना ने जैसे ही नेहा से आज देर से आने के बारे पूछा तो वह बिफर पड़ी | उसने वीना को बताया कि वह बेटे के स्कूल गई थी | फिर दोनों टीचर अपने बच्चों के विद्यालय व उनकी पढ़ाई के बारे मे बतियाने लगीं | नेहा ने अपने बेटे के स्कूल में हुए आज के घटनाक्रम को लेकर खूब शेखियां बघारीं | वह कह रही थी आज उसने प्रिंसीपल व उसकी हिन्दी टीचर को खूब बाट लगाई | दोनों टीचर आपसी घरेलु बातों में मशगूल हो गईं | इधर बच्चे अपनी नोट बुक्स के पन्ने पलट रहे थे | पिछले कई दिनों से उनकी नोट बुक्स चैक ही नहीं हुई थीं | अपने टीचर को बातों मे व्यस्त देख धीरे-धीरे क्लास रूम में शोर बढ़ गया था…||
— अशोक दर्द