कविता

कैसे आग बुझाएं? (कविता)

आग हमारे बहुत काम की, कभी न करती कुट्टी,
एक ही दिन हड़ताल करे तो, हो हम सबकी छुट्टी.

 

हम अपने प्रियजन पर तो हैं, आंच न आने देते,
गुस्सा जो आ जाए तो हम, ”आग बबूला होते”.

 

खूब वीरता दिखलाने को, कहते ”आग पर चलना”,
”सांच को आंच न आती है”, सुन लो यह भी कहना.

 

ध्यान अगर हम नहीं रखें तो, आग भयंकर होती,
सारे नियम भूल जाते जब, आग लगी है होती.

 

आग लगे तो सबसे पहले, दमकल केंद्र को फोन {फोन 101} करो,
आग बुझाने गाड़ी आए, तब तक अन्य उपाय करो.

 

आग तेल-डीजल वाली, पर कभी न डालें पानी,
इससे आग और भड़केगी, होगी बहुत ही हानि.

 

खूब रेत डालो तुम इस पर, कंबल ओढ़ लगाओ लोट,
गैस डालकर इसे बुझाओ, कभी न होगी खोट.

 

लगी आग हो जो बिजली से, शीघ्र कनैक्शन तोड़ो,
लकड़ी से प्राणियों को हटाओ, सी.सी.एल.फोर गैस को छोड़ो.

 

घास-फूस पर आग लगी हो, या जलती हो रुई,
फव्वारे से पानी छोड़ो, आग हो छुई-मुई.

 

खूब संभलकर काम करो तुम, जिससे हो न तुम्हें नुकसान,
आग लगी तो समझो भैय्या, बचा न पाओगे तुम जान.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244