लघुकथा

मोबाइल से बागवानी तक

आज अखबार में अपना फोटो छपा देखकर किसान अनिल को बहुत खुशी हो रही थी. उसे कुछ समय पहले की बात याद आ गई. समय के साथ डिजिटल होती जा रही युवा पीढ़ी अपने अभिभावकों को भी डिजिटल बनाने को उत्सुक होती जा रही है. अनिल के साथ भी ऐसा ही हुआ था. उसका बेटा निखिल उस के लिए एक ऐंड्रायड मोबाइल लाया था. हर पिता की तरह अनिल ने उसको लगभग डांटते हुए कहा था-

”अब इस उम्र में मैं भला मोबाइल चलाना सीखूंगा क्या? वैसे भी यह बहुत महंगा होगा, इसे अभी वापिस कर आ.”

”पापा, आप सही कह रहे हैं. वास्तव में यह बहुत महंगा है, क्योंकि मैं सबसे आधुनिक तकनीक वाला मोबाइल लाया हूं.”

अनिल के चेहरे पर अपने लिए बेटे के प्यार से नरमी आते देख निखिल ने कहना जारी रखा- ”आपकी उम्र के सभी लोग अब मोबाइल चलाना सीख रहे हैं, तो आप क्यों नहीं सीख सकते? आप तो उन सबसे अधिक पढ़े-लिखे और समझदार भी हैं.”

निखिल का तुरुप का यह इक्का काम कर गया था. पापा के नजदीक आते हुए बेटे ने उसे दिखाकर कहा था- ”पापा’, यह देखिए. यह ‘ऐप जी’ है. इसे एक किसान के बेटे भूपेंद्र ने विकसित किया है और इस ऐप की मदद से किसानों को मौसम, जरूरत और कीमत आदि की जानकारी मिल रही है. बहुत लाभ होने से यूपी के किसान बहुत खुश हैं.”
”हमें क्या फायदा होगा? हम तो मध्य प्रदेश के हैं?” उसकी उत्सुकता जग-सी रही थी.

”पापा, रोज ऐसी नई-नई बातें देखने-सीखने को मिलेंगी.” निखिल का उत्साह चरम पर था.

जल्दी ही उसने मुझे मोबाइल चलाना सिखा दिया था. मैं 2002 से खेती कर रहा था, पर मुश्किल से भरपेट खाना जुटा पाता था. शुक्र है कि होशियार बेटा वजीफे से पढ़ता गया और अच्छी नौकरी पा गया था.

2014 में इसी मोबाइल ने मुझे खेती छोड़ बागवानी करनी सिखाया. आज मुझे एक पेड़ से साल भर में करीब एक किवंटल तक अमरूद मिल जाते हैं. 120 पेड़ तो अमरूद के ही हैं. इसके अलावा भिंडी, मिर्च व मूली आदि की खेती भी होती है. धन बरसता देख सभी मुझसे सलाह लेने आते हैं. अब मैं उनको बता सकता हूं कि- ”किसानों को परंपरागत फसलों के साथ-साथ बागवानी भी अपनानी चाहिए. हमें खेत में सभी फसल उगानी चाहिए, ताकि सालभर आमदनी मिलती रहे इससे किसानों को कर्ज नहीं लेना पड़ेगा.”

उसके विचारों की धारा अभी भी बहती रहती, अगर वायदे के अनुसार कल वाला पत्रकार अखबार लेकर उसके पास नहीं आता. उसके साथ चाय पीते-पीते वह निखिल के साथ-साथ मोबाइल की महिमा भी गाता रहा.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

2 thoughts on “मोबाइल से बागवानी तक

  • राजकुमार कांदु

    आदरणीय बहनजी ! अति सुंदर विषय को लेकर आपने एक सुंदर कथा का सृजन कर दिया । बधाई ! निखिल ने अनिल को ठीक ही प्रोत्साहित किया । आज पूरी दुनिया में अदृश्य किरणों का जाल बुना जा चुका है जिसकी असीमित तरंगों में से मोबाइल के जरिये हम अपने काम की तरंगों का चुनाव करके लाभान्वित हो सकते हैं । अनिल ने इसका फायदा भी उठाया । मोबाइल की उपयोगिता देखकर अब तो यही लगता है कि एक मोबाइल हमारा गुरु , सखा , शुभचिंतक , मार्गदर्शक , प्रहरी जैसी कई रूपों में सेवा करता है । सुंदर लेखन के लिए धन्यवाद !

  • लीला तिवानी

    डिजिटल इंडिया की ओर कदम बढ़ाते किसान अनिल की तरह अनेक किसान मोबाइल से बागवानी तक पहुंच सकते हैं. अन्य व्यापारों में भी ऐसे ऐप मौजूद हैं. यह लघुकथा एक समाचार पर आधारित एक सत्यकथा भी है.

Comments are closed.