“छोड़ा मधुर तराना”
वो अतीत-इतिहास बन गया,
जो भी हुआ पुराना।
नूतन के स्वागत-वन्दन में,
डूबा नया जमाना।।
भूल गये हैं हम उनको,
जो जग से हैं जाने वाले,
बूढ़े-बरगद की छाया को,
भूल गये मतवाले,
कर्कश गीतों को अपनाया,
छोड़ा मधुर तराना।
नूतन के स्वागत-वन्दन में,
डूबा नया जमाना।।
गंगा-गइया-मइया,
सबको हमने है बिसराया.
दूध-दही के बदले में,
मदिरा का प्याला भाया,
दाल-सब्जियाँ भूल, मांस को
शुरू कर दिया खाना।
नूतन के स्वागत-वन्दन में,
डूबा नया जमाना।।
बदल नहीं पाये दिनचर्चा,
नहीं बदली कुछ चाल-ढाल,
जो उठते हैं दिन चढ़ने पर,
उनको शुभ हो यह नया साल,
किन्तु हमें तो रोज-रोज ही
गीत नया है गाना,
नूतन के स्वागत-वन्दन में,
डूबा नया जमाना।।
—
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)