मुस्कुराहट
ये मुस्कुराहट तू कहाँ खो चली है
तू भी अब एक सपना हो चली है
गम इतने हो गए हैं दुनियां में
तू भी ईद और दीवाली हो चली है
चलो कहीं जाकर ढूंढे हम सभी
क्योंकि मुस्कुराहट भी मौसमी हो चली है
सभी खौफनाक चेहरा लिए फिरते हैं
मुस्कुराना तो एक पहेली हो चली है
वो कहते हैं कि मैं बहुत खुश हूं
फिर चेहरे पर क्यों झुर्रियां पड़ चली हैं
बनावट का हंसते हैं आजकल लोग
दिल से हँसे तो सदियाँ हो चली हैं
— रमाकान्त पटेल