मैं कर नहीं दूंगा
दिन भर की भागा दौड़ी के बाद शाम को रमुआ अपने घर आया। उसका बेटा घेंघा बहुत सवाल पुछा करता था। रमुआ की पत्नी भाग्यमति अनपढ़ थी। वह दिन भर घर का काम करती रहती। घेंघा स्कूल से घर वापस आने के बाद अपना गृहकार्य कर रहा था। अपने स्वभाव के अनुसार उस दिन भी अपने मां से वह कुछ प्रश्न पूछ पूछना चाहता था। उसके दिमाग में एक प्रश्न घूम रहा था। उसने मां से कहा, मां मुझे एक प्रश्न का उत्तर दोगी, मां ने कहा पूछो कोशिश करूंगी। घेंघा ने पूछा, मां पिताजी दिन – और रात मेहनत करते हैं, फिर भी ना ही खाने के लिए अच्छी चीजें मिलती हैं। पहनने के लिए अच्छे कपड़े नहीं खरीद पाते हैं। रहने के लिए भी अच्छा घर नहीं है, आखिर हम मनुष्यों को इन्हीं चीजों की तो जरूरत है।
मैं सरकारी स्कूल में पढ़ने जाता हूं, वहां शिक्षक भी आते हैं, पर पढ़ाने के बजाय सभी शिक्षक आपस में राजनीतिक वार्तालाप करते हुए समय बिताया करते हैं। चिकित्सा की व्यवस्था ठीक नहीं है, ऐसे में मैं सोचता हूं, कि मैं भी पिताजी के साथ जाकर उनकी मदद करूं। क्योंकि इस तरह की पढ़ाई का कोई फ़ायदा नहीं है, कम से कम समय और पिताजी के मेहनत की कमाई बेकार नहीं जाएगी, भाग्यमती यह सुनकर थोड़ा विचलित हो गई। वह घेंघा को समझाते हुए कहती हैं कि बेटा हम बहुत गरीब हैं। यह बात तुमको भी पता है। इसलिए हम चाहते हैं कि तुम अच्छी तरह पढ़ – लिखकर अच्छा, ईमानदार, आदमी बनो, ताकि हमारे दुख के दिन का अंत हो सके। क्या तुम नहीं जानते की तुमसे ही हम सबके सपने जुड़े हुए हैं। तुम्हारे पिताजी का सपना साकार हो सकेगा, यह सुनकर घेंघा का दिमाग ठनका, और वह बोला, मां हम गरीब या अमीर सभी सरकार को ( आय कर ) देते हैं, शायद इसलिए कि हमारी समस्याओं का निराकरण कर हमें समाज के समान धारा में लाने के लिए सरकार अनेक योजनाएं बनाएगी। ऐसा होता भी है, अलग अलग विभागो में अलग अलग योजनाएं बनाई जाती हैं, उसको जनता के लाभ के लिए अधिकारियों, कर्मचारियों की नियुक्ति भी होती है, लेकिन उसके बाद भी जरुरतमंद लोगों को उसका लाभ नहीं पहुंच पाता, अधिकारी, कर्मचारी, यहां तक की हमारे राजनेता भी जन योजनाओं का बंटाधार कर, अपनी तिजोरी भरने का काम करते हैं, जब हमें अच्छी शिक्षा, चिकित्सा, प्रशासनिक व्यवस्था, किसी भी तरह की कोई व्यवस्था नहीं मिल पा रहा, जबकि हम गरीब होते हुए भी गांव, समाज, राष्ट्रहित के लिए अपने आप को समर्पित करते हैं, लेकिन हमारे दिये हुए ( कर ) भी हमारे चुने हुए प्रतिनिधियों के जीवन को आरामदायक बनाने के लिए उपयोग करते हैं, घेंघा कुछ और कहता कि भाग्यमती बीच में ही उसकी बात को काटते हुए पूछी, मेरा बेटा आज ऐसी बातें क्यो कर रहा है, यह किसने कहा तुमसे, क्योंकि घेंघा अभी छोटा है, और इस प्रकार की बात कर रहा है। घेंघा ने अपनी मां की बात को काटते हुए कहा, मां मैं जब बड़ा हो जाऊंगा तब मैं कोई कर नहीं दूंगा, दरवाजे के पीछे से रमूआ अपने बेटे घेंघा और भाग्यमती की बातें सुन रहा था। जब बेटा की यह वाक्य उसके कानों में गूंजी, वह सामने आकर घेंघा से बोला, ऐसी बात नहीं करते बेटा, इसके पहले कि रमूआ कुछ और कहता, घेंघा बीच में ही बोला पिताजी आखिर हम कर क्यो दे, आप ही बताइए, क्या इसलिए कि अधिकारी हमारे दिये हुए कर से वेतन ले और हमें ही हमारे मूलभूत सुविधाओं के लिए रिश्वत देनी पड़े। हमारे देश में राजनेता घोटाले पर घोटाले करते हैं, मामला न्यायालय में जाता है, जांच एजेंसियां जांच भी करती हैं, घोटाले हुए हैं, यह स्वीकार भी करती हैं, लेकिन दुर्भाग्यवश न्यायालय के समक्ष सबूत प्रस्तुत नहीं कर पाती हैं, देश का एक भी सरकारी या विभाग ऐसा नहीं है जहां लूट – खसोट ना हो अब आप ही बताइए पिताजी मैं क्या ग़लत कह रहा हूं। मेरे जैसे बहुत सारे युवा इस प्रश्न का उत्तर चाहते हैं।
— संजय सिंह राजपूत
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