ग़ज़ल
तमन्ना उसकी की है जो कभी हासिल नहीं होगा
कभी कश्ती की बाहों में कोई साहिल नहीं होगा
जला दूँ तुम कहो तो दिल की सारी ख्वाहिशें अपनी
मगर फिर भी हमारा दिल तेरे क़ाबिल नहीं होगा
बहुत समझा लिया है हमने अपने दिल को ऐ हमदम
तेरी दुनिया में दोबारा ये दिल शामिल नहीं होगा
भरोसा कर लिया मैंने लगाया इल्ज़ाम जो तुमने
सफ़ाई दें भी क्या अपनी गवाह हाज़िर नहीँ होगा
अब चलो हम हार जाते हैं हमें जब हारना ही है
दिल्लगी के खेल में तुमसे बड़ा माहिर नहीं होगा
हां बड़े अहसान हैं हम पर खुदाया शुक्रिया तेरा
दर्द ए उल्फत में भी ‘जानिब’ दिल काफिर नहीं होगा
— पावनी दीक्षित ‘जानिब’