अज़नबी
मैं तो एक अज़नबी हूँ
आता रहता हूँ ख़्वावों में
करती हो मेरा इंतजार क्यों
क्यों देखती हो राहों में
मांगती हो हरदम ख़ुदा से
आता हूं तुम्हारी दुआओं में
कहती नहीं हो किसी से तुम
रहती हो अपनी कदराओं में
मैं जानता हूँ कि तुम मुझको
ढूँढती रहती हो चौबारों में
तुमने कहा है ये ख़ुद से
वो होगा एक हजारों में
अज़नबी की कोई पहचान नहीं
वो मिल जाएगा इन्हीं नज़ारो में
-रमाकान्त पटेल