तन्हा दिल की दीवारों पर
तन्हा दिल की दीवारों पर
कुछ परछाइयां मंडराती हैं !
कभी छेड़ें दिल के तारों को,
कभी एकाँकी कर जाती हैं ! !
कभी पंख लगा के हसरतें,
अल्हड़पन में पहुंच जाती हैं !
खुशियों भरी प्यारी राहें,
फिर वापिस मुझे बुलाती हैं ! !
कुछ अनुत्तरित बातें जीवन की
अस्तित्व मेरी झुठलाती हैं !
आँखों की नमी ओढ़ मुस्कुराहट,
फिर बेचैनी मेरी छुपातीं हैं ! !
क्यों दिल की दीवारों पर
कुछ परछाइयां मंडराती हैं !
क्यों छेड़ें दिल के तारों को,
क्यों एकाँकी कर जाती हैं ! !
अंजु गुप्ता