चार दिन की चाँदनी
चार दिन की चाँदनी
फिर अंधेरी रात है
तेरी न यहाँ कोई बात है
भरी जवानी में काहे इतरावे
रूप दिखावे – रंग दिखावे
सब राख हो जावे के खाक हो जावे
उस चला-चली की वेला में
जाना पड़े अकेला
साथ न जावे एक ढेला
नित कर-कर अत्याचार
मंदिर जावे – मस्जिद जावे
तरह-तरह के ढोंग रचावे
जब अन्तकाल आयो
सब छूटो माल-खजाना
खाली हाथ आना – खाली हाथ जाना
समय रहते गुनाहों से तौबा करले
दया-धर्म जीवन में भरले
दुखिओं के दु:ख तू हरले |