कविता

चार दिन की चाँदनी 

चार दिन की चाँदनी
फिर अंधेरी रात है
तेरी न यहाँ कोई बात है

भरी जवानी में काहे इतरावे
रूप दिखावे – रंग दिखावे
सब राख हो जावे के खाक हो जावे

उस चला-चली की वेला में
जाना पड़े अकेला
साथ न जावे एक ढेला

नित कर-कर अत्याचार
मंदिर जावे – मस्जिद जावे
तरह-तरह के ढोंग रचावे

जब अन्तकाल आयो
सब छूटो माल-खजाना
खाली हाथ आना – खाली हाथ जाना

समय रहते गुनाहों से तौबा करले
दया-धर्म जीवन में भरले
दुखिओं के दु:ख तू हरले |

मुकेश कुमार ऋषि वर्मा

नाम - मुकेश कुमार ऋषि वर्मा एम.ए., आई.डी.जी. बाॅम्बे सहित अन्य 5 प्रमाणपत्रीय कोर्स पत्रकारिता- आर्यावर्त केसरी, एकलव्य मानव संदेश सदस्य- मीडिया फोरम आॅफ इंडिया सहित 4 अन्य सामाजिक संगठनों में सदस्य अभिनय- कई क्षेत्रीय फिल्मों व अलबमों में प्रकाशन- दो लघु काव्य पुस्तिकायें व देशभर में हजारों रचनायें प्रकाशित मुख्य आजीविका- कृषि, मजदूरी, कम्यूनिकेशन शाॅप पता- गाँव रिहावली, फतेहाबाद, आगरा-283111