कविता

कविता – गुनाह

कुछ इस कदर अपने गुनाहों का हिसाब रखता हूँ,
एक आईना पीछे और एक आईना सामने रखता हूँ,
सभी गुनाहों मैं कुछ गुनाह मेरे छूट ना जाये,
इसलिए आईने अपने दाये- बाये भी रखता हूँ,
वो जो ऊपर बैठा है गिनता रहे मेरे सारे गुनाह,
इसलिए सर के ऊपर खुला आसमान रखता हूँ,
ना वो ऊपर वाला समझा है ना मुझे समझेगा कभी,
इसलिए अपने गुनाहों की मैं खुद किताब लिखता हूँ,
अगर वो मेरे गुनाहों की सजा देना भूल भी जाएगा,
तब मैं उसके सजदे मैं अपनी किताब रख दूँगा,
नीरज त्यागी

नीरज त्यागी

पिता का नाम - श्री आनंद कुमार त्यागी माता का नाम - स्व.श्रीमती राज बाला त्यागी ई मेल आईडी- [email protected] एवं [email protected] ग़ाज़ियाबाद (उ. प्र)