बाल कविता

मितव्ययिता

रामू खेलकर घर में आया,
देखा नल को बहता उसने,
सोचा ममी बंद करेंगी,
नल को बंद किया ना उसने.

कमरों की बत्ती जलती थी,
पंखे भी सब हवा दे रहे,
सोचा पापा बंद करेंगे,
वरना पंखे चलते ही रहें.

लेकिन बिल जब ज्यादा या,
पापाने सबको बुलवाया,
रामू ने तब गलती मानी,
सुनागरिक बनने की ठानी.

अब तो घर का कूड़ा-करकट,
नहीं फेंकता वह रस्ते पर,
गढे में भरता जाता था,
खाद बनाता वह खुद घर पर.

कभी देखता गैस खुली है,
झट से उसको बंद कर देता,
ममी व्यर्थ न गैस जलाओ,
अच्छा-खासा भाषण देता.

नया सत्र प्रारम्भ होते ही,
पृष्ठों पर नंबर लिख देता,
कभी न कोई पेज फाड़ता,
काम नियम से था कर लेता.

इसी तरह सुनागरिक बनकर,
उसने देश का मान बढ़ाया,
बड़ी-बड़ी बातें न बनाकर,
मितव्ययिता का पाठ पढ़ाया.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

One thought on “मितव्ययिता

  • लीला तिवानी

    मितव्ययिता अच्छी आदत है. घर में मिले संस्कारों से रामू मितव्ययिता के संस्कार सीख गया. इस बाल कथा गीत के द्वारा सबको मितव्ययिता के संस्कारों से सराबोर होने की सीख मिल सकती है. जीवन के हर क्षेत्र में मितव्ययिता अत्यावश्यक व उपयोगी है.

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