पिता की गोद
काश मैं फिर से छोटी बच्ची बन जाती और तुम्हारी गोद में खेल पाती ।
झूल जाती तुम्हारे कंधों पर तुम्हारे बालों से
छेड़ पाती ।
न होती कोई कमी कभी भी प्यार की दुलार की
तुम्हारी एक डांट से पहले की तरह सहम जाती ।
उदास होती कभी तो पूछ्ते मुझसे प्यार भरी नजरों से
तुम्हारे लाड़ को हीरे मोतियों से तोल पाती।
प्यार का गहरा सागर होता तुम्हारी बाहों में
जिंदगी के सारे गम लहरों में डूबकर धो पाती ।
सीख जाती तुम्हीं से जिंदगी की टेडी मेड़ी चालें ,
काश जिंदगी शतरंज के मोहरे न बनी होती ।
जिंदगी जीने के लिए जरूरी हैं कागज के कुछ फूल
काश तेरे दामन में अपने आंसुओं को संजो पाती.
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़