बालकहानी- खिलखिलाता परिवार
नदी के किनारे-किनारे सुंदरम गाँव बसा हुआ था। ऊंचे ऊंचे पहाड़ ,बहता हुआ पानी,महकते फूल और हरियाली के बीच खिलखिलाता गाँव। जो वहाँ आता जाने का नाम न लेता।
गांववालों को ही नहीं,बच्चों तक को को पेड़ पौधों से बड़ा प्यार था। सड़क के किनारे लगे छायादार वृक्षों को न कोई कुल्हाड़ी से चोट पहुंचाता न ही फलों पर निशाना साधकर उन्हें गिराने की कोशिश करता।
उस गाँव में ननटू रहता था । एक बार उसके चाचा अपने बेटे पलटू के साथ उसके घर आए।
ननटू और पलटू में खूब जमती और धूप कम होते ही नदी के किनारे घूमने निकल पड़ते।
एक दिन उनके बाबा बोले-“बच्चो, थैले ले जाओ। सड़क के किनारे लगे पेड़ों से टूटे आम, जामुन और बेर जमीन पर बिछे होंगे । कुछ खाना और कुछ घर के लिए ले आना।”
पलटू ने एक थैला कंधे पर लटका लिया, पर ननटू ने दो थैले लिए।
पलटू ने हैरानी से पूछा, “अरे , तू दो थैलों का क्या करेगा! इनमें तो बहुत सारे फल समा जाएंगे। उन्हें कैसे उठाकर लाएगा?”
“पहले नदी किनारे चल। तुझे अपने आप ही पता चल जाएगा।”
नदी किनारे पेड़ों पर लगे फलों को देख पलटू के मुंह में पानी आ गया । तेज हवा चलने के कारण पेड़ के नीचे काफी जामुनें डाल से टूटकर बिखरी पड़ी थीं। पलटू मोटी-मोटी जामुनें उठाकर खाता और बीज थूक देता। ननटू ने भी जामुनें खाईं पर उनके बीज एक थैले में डालने लगा।
“यह क्या कर रहा है। झूठे बीज को थैले में रख दिया। थैला गंदा हो गया। उसे निकाल जल्दी से।” पलटू नाक-भौं सकोड़ते बोला।
“यह अपने आप ही निकल जाएगा। ”
“कैसे?”
“तुझे अपने आप ही पता लग जाएगा। चल आम खाते हैं।“
थोड़ी दूरी पर आम के चार पेड़ खड़े थे । आम के बोझ से डालियाँ झुकी पड़ रही थीं । वे एड़ी के बल उचक-उचक कर आम तोड़ने लगे।
फल तोड़कर कुछ आम उन्होंने थैले में रख लिए। एक-एक आम को हथेली में कैद कर लिया। फिर उँगलियों से दबाकर उनका पेट पिलपिला किया और चूसने लगे दिल लगाकर। पलटू ने पत्थर पर निशाना लगाते गुठली को हवा में उछाल दिया । ननटू गुठली को चूसता ही रहा जब तक उसकी हड्डी-पसली न दिखाई देने लगीं। फिर उसने उसे भी बीज वाले थैले में पटाक से डाल दिया।
पलटू चौंक गया-“ यह क्या! आम की जूठी गुठली भी थैले में डाल दी। तू तो बहुत गंदा है। लोग जूठन घर से बाहर फेंकते हैं और तू इसे घर ले जा रहा है। थैला भी सड़ा दिया । ये सब फालतू के काम क्यों कर रहा है?”
“उफ ! जरा सब्र नहीं तुझे— अभी इसका पता लग जाएगा। वो बेर की झाड़ियाँ देख –लाल- लाल खट्टे बेर बुला रहे हैं। ”
“खा-खाकर उनके बीज भी थैले में भरेगा क्या ?”
“जानता है तो पूछ क्यों रहा है !”
“तुझसे बात करना ही बेकार है। मैं तो अब तेरे साथ यहाँ आऊँगा नहीं।’’
“कैसे नहीं आयेगा –बार–बार आएगा!”आवाज में तेजी आ गई ।”
“नहीं आऊँगा—नहीं आऊँगा।’’
बात बिगड़ती देख ननटू नम्र पड़ गया – “ पलटू नाराज न हो। बहुत दिनों के बाद तो हम मिले हैं। पहले बेर खा लें फिर तो तू जान ही जाएगा मैंने बीज क्यों थैले में डाले?’’
“जान तो गया हूँ — तू अपनी मनमानी करता रहेगा। बहुत जिद्दी है । तेरे साथ आया हूँ तो तेरी हर बात सहनी भी पड़ेगी ।’’
पलटू खट्टे –मीठे बेरों का स्वाद लेता जाता और अपने चारों तरफ उनकी गुठलियाँ फेंकता जाता। ननटू बेर खाकर उसकी गुठली भी बड़े मजे से थैले में सरका देता। पलटू उसकी इस हरकत बुरा सा मुंह तो बनाता पर यह जानने के लिए भी उत्सुक था कि देखें– इन बीज और गुठली का क्या होता है!
लौटने समय वे एक ऐसे रास्ते से गुजरे जहां कोई पेड़ न था। चलते-चलते ललटू को भूख सताने लगी और उसकी चाल भी धीमी हो गई। अचानक ननटू के थैले से आम की गुठली नीचे आन गिरी।
पलटू चिल्लाया-“रुक रे ! तेरे थैले मैं तो छेद है। तेरी प्यारी गुठली तो नीचे गिर गई। रे—रे—बेर की गुठलियाँ भी जमीन पर लोटन कबूतर हो रही हैं। हा—हा–। ’’
“लगाने दे लोट । ”
“लोट लगाने दे! फिर इनको तूने इखट्टा क्यों किया? क्या फायदा हुआ?”
“फायदा हुआ मेरे भाई। गौर से देख ,दूर -दूर तक यहाँ किसी पेड़ की परछाईं भी नहीं है। अगर इस मैदान में थोड़ी -थोड़ी दूरी पर बीज गिरेंगे तो मिट्टी,पानी और सूर्य की कृपा से कोई न कोई बीज तो अंकुरित होगा। फिर वह बच्चा सा कोमल पौधा बड़ा होकर पेड़ बनेगा। सारा पेड़ हरी-हरी पत्तियों से ढक जाएगा। बीच- बीच में फल-फूल सिर निकाल कर झाँकेंगे तो सोच यह जगह कितनी सुंदर लगेगी। अरे तेरे चेहरे पर तो हवाइयाँ उड़ रही हैं लगता है चलते -चलते भूख लग आई है। एक बार तो तूने जरूर सोचा होगा -–क्या ही अच्छा होता यहाँ भी फल लटके होते!
‘’हाँ। तू एकदम ठीक कह रहा है ।
‘अभी तो तू थैले में से निकालकर खा ले। पर अगली बार जब तू यहाँ आयेगा हर जगह फलों से लदे पेड़ तेरा स्वागत करेंगे।
‘तुम ऐसा सोचते हो तभी तो तुम्हारा गाँव इतना सुंदर है।”
“ बाबा भी तो कहते हैं जिससे तुम लेते हो उसको देना भी चाहिए। पेड़-पौधों से हम कितना कुछ लेते है। यदि लेते ही रहे तो एक दिन ऐसा आयेगा जब पेड़ कम होने लगेंगे।”
” बाबा ठीक ही कहते हैं। पर हम उनको क्या दे सकते हैं?” पलटू ने पूछा।
“बहुत कुछ दे सकते हैं। जगह जगह पेड़ लगाकर उनका परिवार बढ़ा सकते हैं। देखभाल करके उनके सच्चे दोस्त बन सकते हैं। इससे वे हमेशा खिलखिलाते–हरे भरे रहेगे ।
पलटू ने बड़े उत्साह से ननटू का हाथ अपने हाथ में ले लिया। उसकी पकड़ बहुत मजबूत थी मानो वह उसी के कदमों पर चलने का वादा कर रहा हो।
समाप्त
— सुधा भार्गव
बहुत सुन्दर और प्रेरक बाल कहानी !