कुंडलियाँ….
आँगन मन इठला रहा, एक अधखिला फूल।
घात अमित्र सम वात की, चुभा गयी थी शूल।
चुभा गयी थी शूल, फूल मुरझाया ऐसे।
यत्न वृथा सब आज, खिला न पहले जैसे।
“अनहद” महत विषाद, लगे ये सूना कानन।
मुरझाया था फूल, चहकता कैसे आँगन।
……अनहद गुंजन
आँगन मन इठला रहा, एक अधखिला फूल।
घात अमित्र सम वात की, चुभा गयी थी शूल।
चुभा गयी थी शूल, फूल मुरझाया ऐसे।
यत्न वृथा सब आज, खिला न पहले जैसे।
“अनहद” महत विषाद, लगे ये सूना कानन।
मुरझाया था फूल, चहकता कैसे आँगन।
……अनहद गुंजन