हिंदी से नाता टूट सा गया है
राष्ट्रभाषा पर नूतन विचार पढ़ने और आगे बढने से पहले आप यह जानें कि राज्यभाषा, राजभाषा, राष्ट्रभाषा और मातृभाषा क्या हैं ? हममें से अभी 80 प्रतिशत लोग यह नहीं बता पायेंगें क्योंकिं हिंदी से नाता टूट सा गया है।
हमारे देश की राष्ट्रभाषा क्या है ? जबाब आएगा हिंदी जबकि लोगों को यह जानकारी ही नहीं कि हम आज भी भ्रम में हैं कि हिंदी हमारी मातृभाषा है, जबकि भारत देश एक ऐसा देश है जहाँ प्रत्येक राज्य की अपनी एक अलग भाषा संस्कृति है जिसे संविधान में राजभाषा की श्रेणी में रखा गया है जिसके कारण लोग अपने को महाराष्ट्रियन, गुजराती, पंजाबी, बंगाली, कन्नड़ आदि मानते हैं, जिसका फायदा पहले मुगलों ने फिर अंग्रेजों ने उठाया और अब हमारे देश के वशिष्ट लोग उठा रहे हैं तभी भारत आज ऐसा देश है जिसकी अपनी कोई मातृभाषा ही नहीं है ! लेकिन क्यों ? शायद नहीं पता । हमारे समाज के पढे लिखे लोगों को अभी यह नहीं पता कि हिंदी हमारी राजभाषा, राज्यभाषा, संपर्क भाषा है, जबकि पूरे भारत की मातृभाषा हिंदी नहीं है । हिंदी के प्रचार प्रसार में जितनी भी संस्थाएं, संघ जुटे हुए हैं उनका उद्देश्य हिंदी को भारत में उसका अस्तित्व वापिस लौटाकर उसे सम्मानित करना है । अगर हिंदी को समाज में वापिस नहीं लाया गया तो वह दिन दूर नहीं कि आने वाली पीढ़ी अंग्रेजी को अपनी भाषा समझेगी ।
सरल शब्दों में अर्थ समझें –
राज्यभाषा का अर्थ – सरकारी गतिविधियों और कामकाज में उपयोग की जाने वाली भाषा ।
राज्यों की विधानसभाएं बहुमत के आधार पर किसी एक भाषा को या एक से अधिक भाषाओं को अपने राज्य की राज्यभाषा घोषित कर सकती हैं। संविधान में हिंदी को राज्यभाषा माना गया है । क्या आज सारे सरकारी कामकाज हिंदी में ही होते हैं, शायद नहीं । एक बार खुद से पूछिए अगर ऐसा होता तो सरकारी बैंकों से लेकर सरकारी स्कूल कॉलेज में हिंदी में ही हस्ताक्षर होते, हिंदी सर्वप्रथम होती और अंग्रेजी बिल्कुल भी नहीं ।
राजभाषा का अर्थ – संविधान में कुल २२ भारतीय भाषाओं स्थान प्राप्त हुआ है राजभाषा का। इसकारण भारत की मुख्य भाषाएँ बाईस मानी जाती हैं लेकिन नाम हिंदी का ही सर्वप्रथम आता है क्योंकि इसको बोलने वालों की संख्या ज्यादा है ।
राष्ट्रभाषा का अर्थ – भारत राष्ट्र में सर्वाधिक उपयोग होने वाली भाषा । जो भाषा सम्पूर्ण राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करे । बतौर राष्ट्रभाषा के तौर पर हिंदी का उपयोग होता है क्योंकि यह एक संपर्क भाषा भी है । आज भारत का प्रतिनिधित्व करने वाले अंग्रेजी भाषा का प्रयोग कर, हिन्दीभाषी भारतीयों को बेज्जत करने से नहीं चूकते ।
मातृभाषा का अर्थ रू हम जिस समाज, जिस प्रांत में रहते हैं वहां के लोगों दुआरा बोली जाने वाली भाषा । हिंदी का प्रयोग पूरे भारत में नहीं होता इसके कारणों में यह भी एक कारण है कि भारत के विभिन्न प्रांतों में करीब 1652 मातृभाषाएँ प्रचिलित हैं । जिनमें से २२ भाषाओं को संविधान में जगह मिली क्योंकि यहां पर कुछ भाषाएं ऐसी बोली जाती है जिनमें बहुत ही कम अंतर है और इसके कारण उन्हें एक भाषा माना जाए या दो यह कहना मुश्किल है । दुनिया जानती है कि भारत एकलौता ऐसा देश है जहां अनेकता में एकता प्रदर्शन होता है। हमारे यहाँ हर राज्य में अलग-अलग बोलियाँ बोली जाती हैं, रहन-सहन अलग है और संस्कृति भी हर ३०-५० किलोमीटर में ही अलग अलग दिखाई देती हैं।
अलग अलग बोली,अलग अलग रंगत है ।
संस्कृति अलग है, अलग अलग स्थान है ।
कितनी भी विभिन्नताएं क्यों ना हो हममें ?
हर प्रांत के लोगों का आपस में मान सम्मान है।
व्यक्ति को क्रियारूप के लिए सहयोग की आवश्यकता होती है , इसके लिए विचारों की आवश्यकता होती है और विचारों के लिए शब्दों की इसी को हम भाषा कहते हैं ! प्रत्येक समाज की एक भाषा होती है, हम किसी भी प्रांत के समाज से आएं लेकिन जब हम अपनी संस्कृति से अलग होते हैं तब नए समाज और नए लोगों के बीच सामंजस्य स्थापित करने के लिए हम नयी भाषा शैली और संस्कृति को सीखने के लिए लालायित होते हैं ! तब हम ना तो अपनी मातृभाषा को पूरी तरह ग्रहण कर पाते हैं ना ही किसी अन्य भाषा को जिससे समाज में भिन्नता तो रहती है मगर लोगों के विचारों का सही आदान प्रदान नहीं होता और समाज सुदृढ नहीं बन पाता !
जीरो भारत ने ही दिया था
तब अंगेजी को नहीं पढ़ा था ।
देशी भाषाये पहचान थी अपनी,
संस्कृत ने शब्दों को गड़ा था ।
विदेशियों के उर ईर्ष्या भाव उमड़ा था
पहले अरबी फिर अंग्रेजी से जकड़ा था ।
मूक बने निहारते रहे एकता के अभाव में
भूल बैठे सब पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव में ।“