अविश्वास की डफली बज गई
अपनी-अपनी डफली बजाना और अपना-अपना राग अलापना सबको बहुत अच्छा लगता है. डफली बजाने का अवसर अगर उत्सव में मिले तो बहुत अच्छा, लेकिन यही अवसर अगर महोत्सव में मिले तो सोने पे सुहागा. इससे भी बढ़कर यह महोत्सव अगर संसद भवन में हो और मौका अविश्वास प्रस्ताव उठाने-गिराने का हो, तो यह डफली बजाने का मौका मिलना बहुत ही खास हो जाता है. इस शुक्रवार 20 जुलाई 2018 को एक नहीं 39 संसद सदस्यों को डफली बजाने का मौका मिला, जिसका सबने पूरा-पूरा आनंद लूटा.
बात आनंद की करनी हो तो यहां अखियों के इशारे भी चले, इशारों में वार भी चले, किरदार सुपरहिट भी हुए और काव्यपाठ भी हुए. शेरो-शायरी तो आम बात है. अविश्वास प्रस्ताव पर ब्लॉग शुरु करने से पहले बता दें, कि अविश्वास प्रस्ताव रखा जाना चाहिए था या नहीं, यह तो अलग बात है, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव शुरु होते ही संसद भवन पानी-पानी हो गया था. अविश्वास प्रस्ताव पेश करने की कटुता पर आसमान रो पड़ा था.
तो साहब, अविश्वास प्रस्ताव शुरु हुआ. 39 सांसदों ने करीब 12 घंटे तक बहस की, हालांकि अंत में सारी चर्चा राहुल गांधी और पीएम मोदी के वार-पलटवार और हास-परिहास-उपहास की रही, लेकिन इनके अलावा भी कई अहम किरदार रहे. अविश्वास प्रस्ताव के बहाने जहां विपक्ष ने मोदी सरकार की नीतियों पर सवाल खड़े किए, वहीं सरकार ने अपनी सफलताएं गिनाईं. बीजेपी ने अविश्वास प्रस्ताव के बहाने चुनावी राज्यों को भी साधने की कोशिश की.
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सरकार पर बड़े हमले किए. देश को पीएम मोदी के ‘जुमला स्ट्राइक’ का पीड़ित बताया. नौकरी को लेकर सरकार को उसके आंकड़ों से घेरा. महिला, दलित, अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा, मॉब लिन्चिंग पर पीएम पर चुप्पी साधने का आरोप लगाते हुए कठघरे में खड़ा किया. असल ड्रामा तब शुरू हुआ जब राहुल ने कहा कि पीएम उनसे आंख नहीं मिला रहे. यह ड्रामा चरम पर तब पहुंचा जब राहुल अपने मुताबिक असल हिंदू की परिभाषा बताने के लिए सदन में ही मोदी से गले मिल आए और फिर राहुल की इस नाटकीय पारी का अंत बगल में बैठे ज्योतिरादित्य सिंधिया की ओर देखते हुए आंख मारने से हुआ. इस पर उनको लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन की फटकार भी सहनी पड़ी.
टीडीपी के अविश्वास प्रस्ताव पर सबसे अंत में पीएम मोदी बोले लेकिन उनके निशाने पर कांग्रेस और राहुल ही रहे. पीएम ने एक-एक कर राहुल के आरोपों को खारिज किया और उनके ड्रामे का जवाब भी ड्रामे से दिया. राफेल डील पर लगे आरोपों को बचकाना बताते हुए पीएम ने कहा कि दोनों देशों को स्टेटमेंट जारी करना पड़ा. जुमला स्ट्राइक को पीएम ने सर्जिकल स्ट्राइक से जोड़ा और कहा कि आप मुझे गाली दे सकते हो, लेकिन जवानों का अपमान न करो. पीएम ने एक साल में एक करोड़ नौकरी देने का दावा किया. कालेधन पर कहा कि लड़ाई जारी रहेगी. मोदी ने राहुल पर तंज कसते हुए कहा, ‘मैं गरीब मां का बेटा, पिछड़ी जाति में पैदा हुआ, आप नामदार हैं, हम कामदार है. आपकी आंख में आंख डालने की हिम्मत मुझमें नहीं है.’ राहुल गांधी के आंख मारने पर कहा, ‘आंख की हरकत को पूरा देश देख रहा था.’
केंद्रीय मंत्री रामदास आठवले को बोलने के लिए एक मिनट का ही समय मिला था लेकिन उन्होंने उसी समय लिखी अपनी कविता ही पढ़ डाली. आप भी जायजा लीजिए-
‘आज राहुल गांधी जी ने प्रधानमंत्री जी के गले को मिलाया गला
लेकिन नरेंद्र मोदीजी के पास है कांग्रेस को हराने की कला,
कांग्रेस ने पूरे किए थे सत्ता 50, 51, 55 साल,
तब उन्होंने कमाया है बहुत ही माल,
2014 में नरेंद्र मोदीजी ने किया था बहुत बड़ा कमाल,
इसलिए देश में हो रहा है विकास का धमाल,
कांग्रेस का आज देश में ठीक नहीं है हाल,
इसलिए नरेंद्र मोदीजी जीतेंगे 2019 का साल’
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने भी हास्यबोध का पूरा पुट डाला. उन्होंने अविश्वास प्रस्ताव पर विपक्षी एकता को लेकर चुटकी ली. उन्होंने कहा कि इन दलों का नेता कौन होगा अगर इसकी चर्चा हो जाए, तो समझो गई भैंस पानी में. मतलब सबको समझ में आ गया था.
ड्रामा और भी हुआ. सहयोगियों ने ही दिखाए तेवर. शिवसेना ने वोटिंग से दूर रहने और बीजेडी ने चर्चा शुरू होते ही सदन से वॉकआउट किया, उससे एनडीए को ही झटका लगा है.
कहने का तात्पर्य यह है जैसा कि पहले से ही अनुमान था, सबने एक दूसरे की खूब खबर ली. अंत में नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ टीडीपी का अविश्वास प्रस्ताव गिर गया. अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में 325 वोट पड़े जबकि इसके पक्ष में महज 126 ही वोट पड़े. इस प्रस्ताव पर कुल 451 सदस्यों ने वोट डाले. इस तरह सबकी डफली बज गई, जिसके लिए सब खूब जोरशोर से तैयारी करके आए थे. सबने अपनी-अपनी जरूरत और पहल के हिसाब से अपनी डफली बजाई. शायद सबकी डफली याद न भी रह पाए, लेकिन राहुल गांधी की झप्पी-पप्पी बहुत समय तक याद रखी जाएगी और भुनाई भी जाएगी. भले ही डफली सबकी अपनी हो, पर उसका अर्थ तो सब अपना ही निकालेंगे न! बहरहाल पक्ष और विपक्ष दोनों खुद को सफल मानकर चल रहे और खुश हो रहे हैं.
लीला बहन , देश के नेताओं की मुझे तो कभी समझ नहीं आई . मुझे तो एक बात की समझ नहीं आई की जब कुछ विधायक दल बदली कर लेते हैं तो वोह लोगों के चुने हुए नेता होते हैं, फिर जब दल बदली करते हैं तो जिन लोगों ने उस को चुना था, उन का किया हुआ ?
प्रिय गुरमैल भाई जी, देश के नेताओं की बात समझ में आ जाए, तो फिर बात ही क्या है? उनका काम बनता, भाड़ में जाए जनता. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
अच्छा लेख बहिन जी. इसमें बस एक गलती है. बीजू जनता दल कभी एनडीए का हिस्सा नहीं रहा. इसलिए उसके वाकआउट से कोई फर्क नहीं पड़ता. परन्तु शिव सेना का रवैया सरासर मूर्खतापूर्ण है. सत्ता की मलाई चाटना चाहते हैं, पर विरोध करते हुए दिखना चाहते हैं. हद है.
प्रिय विजय भाई जी, आपकी बात कुछ हद तक ठीक लगती है. जब देश की बजाय अपने ही हित की बात सोची जाती है, तो कदम मूर्खतापूर्ण ही उठने लग जाते हैं. बीजू जनता दल ने विपक्ष को धोखा दिया और शिव सेना ने पक्ष को पीठ दिखाई. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.
जहां अविश्वास प्रस्ताव पर संसद में बहस के दौरान लोकसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने भी हमला बोलने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
वहीं पीएम से गले मिले राहुल, सुब्रमण्यन स्वामी बोले, ‘जहर देने का भी तरीका, मेडिकल चेक कराएं मोदी’