भाषा-साहित्य

कविता

कविता में संवेदना और प्रेम की नदियाँ बहती है. सच्चा कवि-रचनाकार वो है जो किसी भी स्थान या जगा की परवाह किये बिना कविता की रचना करने में ही रस होता है. कितने लोग कविता पढना टालते है. कितने लोगों को कभी कभी कविता सुनने में भी रस होता nahinahinनहीं है. लेकिन कितने किस्से ऐसे होते है जिसमे कविता आदमी को टालती है. ह्रदय और मन की सूक्ष्म भावनाओं से कविता की रचना होती है. इसमें अनहद का नाद होता है. इसी लिए कवि इश्वर के करीब होते है.
कविता स्थल और शुक्ष्म की ओर की यात्रा है. इसीलिए संतोने परम पिता इश्वर की प्राप्ति के लिए कविता द्वारा ही प्रयत्न किया है. कविता की किताब कम पढ़ी जाती है. कविता मनुष्य के जीवन से दूर जा रही है उसका एक ही कारण है कि, मनुष्य सवेंदन हिन हो गया है इसके कारण कविता ने अपनी नजाक़त और मार्मिक अभिव्यक्ति खो दी है.
साहित्य समाज का अरीसा है. साहित्य प्रतिबिम्ब (परछाई) भिन्न नहीं लेकिन समाज का प्रतिनिधि है. जीवन के साथ रचा हुआ साहित्य ही सुन्दर होता है.
हिंदी साहित्यकार प्रेमचंदजी कर सुर है, कि साहित्य केवल मन (दिल) बह्लानेकी चीज नहीं है मनोरंजन के सिवा उसका और भी उदेश्य है. जो दलित है, पीड़ित है, वंचित है, चाहे वो व्यक्ति को या समूह उसकी वकालत करना ही साहित्य का कर्म है.
साहित्य में समाज के निचले स्तर का दलित, पीड़ित शोषित वर्ग के मनुष्यों की अवहेलना करने के कारण दलित साहित्य का जन्म हुआ है. पांडित्य और प्रशिष्टता के युग में भाषा और साहित्य की मुखधारा से समाज का अंतिम मनुष्य वंचित रह जाने के कारण दलित साहित्य का उद्भव ही कारण है. साहित्य दलित नहीं होता. लेकिन जिस साहित्य में दलित, पीड़ित, शोषित समाज की परछाई उनका सामाजिक जीवन की कठिनाईयां और अच्छी बातों का प्रतिरूप दिखाई देता है, वो दलित साहित्य है.
कविता सामाजिक परिवर्तन का माध्यम है. रचनाकार आलोचक पैदा करता है. समय समय पर समाज में उत्तम मनुष्य पैदा होते रहे हैं ऐसे हर समय में श्रेष्ट कविता की सरिता निरंतर बहती रही है.
कविता भाषा का अलंकार है. कविता संस्कृति का विशेष महत्वपूर्ण अंग है. जिस कविता में मनुष्य की बात नहीं होती वह कविता लोगों के दिल को छुती नहीं. कितनी रचनाएं ऐसी होती है जो विवेचक को खुश कर के इनाम पा लेती है. मनुष्य की बात करने वाली कविता ही लोगों में संवेदना प्रगट करती है.
कवि जहोन किट्स ने अपने कवि मित्र जहोन टेलर को कहा था कि कविता वृक्ष के पन्नों की तरह खिलती नहीं है वो अच्छा है.
कविता सूक्ष्म भावों को अपने में समा लेने वाली पेन ड्राइव हैं. कविता मैं लघु कथा का रस होता है. ललित कला के निबंध का गद्य की छटा का आस्वाद होता है. अमेरिकन पत्रकार डॉन मार्कविस ने ये बात अच्छी तरह की है.
कविता लिखना वो गहरी खाई में गुलाब की पंखुड़ी डाल के उसकी आवाज का प्रतिध्वनी सुनने के लिए प्रतीक्षा करने के बराबर है.
मनुष्य जाति के लिए हिंसा, अज्ञानता, झगडे-फसाद और कोलाहल से भरी इस दुनिया में कविता एक आश्वासन है. कविता का आम मनुष्य के साथ संबंध रहता ही है.
कवीर अपनी कविता में कहते है कि,
“बहता पानी निर्मला, बांध गंधीला होय
साधूजन रमते भले, दाग न लगे कोई”

कबीरजी अपनी कविता के माध्यम से कहते हैं की जो पानी बहता रहता है वो बहुत निर्मल और शुध्ध होता है और बंधा हुआ पानी गंदा होता है. “रनिंग वोटर इज ओलवेझ क्लीन”. कुदरती गति से बहता पानी हंमेशा स्वच्छ और पारदर्शक होता है. पवित्र होता है. बहेते पानी में लयबध्ध संगीत का अनुभव होता है. बहता पानी जिवंत होता है.बंध पानी बेजान होता है.

उपनिषद ने कहा है की चरे वेति – चरे वेति. चलते रहो-चलते रहो. आप कहाँ से आते हो वो महत्वपूर्ण नहीं हैं. और आप कहाँ जाने वाले है उसका भी आपको मालूम नहीं है वो बात भी बराबर है लेकिन बस चलते रहो.

स्कोटीश नवलकथाकार (उपन्यास लिखने वाला) रॉबर्ट लुइ स्टीवन्स ने लिखा है कि, “I travel not to go anywhere but to go”. इसका मतलब है कि में कहीं जाने के लिए नहीं लेकिन चलने के लिए चलता हूँ. अच्छा प्रवासी वो होता है जो किसी भी प्रकार की सोच मन में नहीं लाता. चलने मतलब मात्र हाथ पैर हिलाके चलना वो नहीं हैं. चलने के साथ शरीर और मन दोनों चलना चाहिये. चलने की बात कुदरत के साथ जुड़ जाती है तब वो आध्यात्मिक बन जाती है. समाज के साथ संवाद करने से वो समाजीक बन जाती है.

संत कबीर ने कहा है कि साधू हंमेशा खेलता रहता है, लोगों के साथ निश्वार्थ भाव से वो लोगों के लिए चलता रहता है. उसको दाग कैसे लगे? कितने लोग यात्रा को निकलते है लेकिन सामान के साथ वो वापस लोटते हैं तब उनके सामान में बढ़ावा होता है लेकिन उन में कोई सुधार यानि कि बदलाव नहीं आता. कितने लोग ऐसे है कि एक ही जगा बैठे रहते हैं लेकिन वो भीतर से चलते हैं. सूक्ष्म रूपमें वो लोगों से संपर्क बनाए रखते हैं. उनका आध्यात्मिक विकास होता है. उनका मन-ह्रदय प्रसन्न रहता है. इसके सन्दर्भ में कबीर की ये साखी है;

“बंधा पानी निर्मला, जो एक गहिरा होय
साधुजन बैठा भला, जो कुछ साधन होय”.

बंधा पानी निर्मल हो सके, यदि वो गहरा हो तो. इसी तरह एक जगह बैठा हुआ साधू संत भी निर्मल और सात्विक हो सकता है. यदि वो जप-तप में डूबा हुआ है तो.

कभी कभी एक शब्द या पंक्ति से कविता निर्माण होती है. “सुनो भाई साधू” गीत उस का उदहारण है. कभी कभी कविता लिखने का अवसर लम्बे अरसे तक प्राप्त नहीं होता है. लेकिन कभी कभी ऐसा भी होता है कि कविता की लहर मन में अचानक दौड़ आती है.

संत रविदास की कविता-
“प्रभुजी तुम चन्दन हम पानी तुम दिया हम बाती”
कितनी अच्छी है ?
हिलाने से बच्चा सोता है, राजा जागता है“

वेनुगोपालजी की पंक्ति है.
तुलसीदास, पिंगलीदास, केशवदास – ये सब हिंदी कवि है.
“माली आवत देख के कलियाँ करे पुकार,
फूलों को तो चुन लिया, कब हमें चुन लेगा”?

साठोतरी हिंदी कविता : हिंदी कविता लेखन के क्षेत्र मैं सन १९६० के बाद एक परिवर्तन परिलक्षित होता है. जिसके अंतर्गत करीब तीन दर्जन से अधिक काव्यान्दोलन चलाये गए. जिस में से अकविता आन्दोलन को मह्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ. साठोतरी हिंदी कविता की दिशाएं काफी व्यापक रूप धारण किये हुए है. साठोतरी हिंदी कविता की सबसे प्रमुख विशेषता, आझादी से मोहभंग रही है. जिस के अंतर्गत साठोतरी कवियोंने राजनितिक, आर्थिक तथा सामाजिक क्षेत्रों की बुराइयों को उखाड फेंकने के लिए कविता को अपना माध्यम बनाया. अत: कहना न होगा कि साठोतरी हिंदी कविता की दिशायें व्यापक द्रष्टिकोण वाली है. सन १९६० के बाद हिंदी कविता में विशेष रूपसे राजनितिक की और झुकाव परिलक्षित होता है.

साठोतरी जनवादी कविता में प्रेम की एक नयी द्रष्टि दिखाई देती है. इन कवियों का प्रेम संबंध रूमानी न रहकर यथार्थ के कठोर धरातल पर पैदा होता एवं परिपक्व होता है. इस के साथ ही नारी की एक नयी पहेचान सामने आती है. जिस में नारी भोग्या या दासी न रहकर सहभागिनी है. अनेक जगहों पर नारी का क्रान्तिकारी रूप सामने आता है. स्त्रियाँ हाथ में बन्दुक ले कर शोषक और बलात्कारी व्यवस्था के खात्मे के लिए मैदान में आ जाती है.

कविता को वाणी की आँख कहते हैं. कविता में डिब्ब गुर्राता है. झुग्गी के छेद को टपकाता है. कविता सिर्फ शब्दों का बिसात नहीं है, वाणी की आँख है. हिंदी कविता की विषय वस्तु स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद लोगों के समक्ष उपस्थित समस्यायों को उजागर करती है.

गुलाबचंद पटेल

गुलाब चन्द पटेल

अनुवादक लेखक कवि व्यसन मुक्ति अभियान प्रणेता गुलाबचन्द पटेल गांधीनगर मो,9904480753 वेब. vysanmukti.webnode.com ईमेल [email protected]