खाना खाने के लिए मेरी अपनी अकेले की जगह है और वोह है किचन टेबल के साथ। यहाँ मेरे लिए एक डिसेबल चेअर है। यों तो घर में कहीं भी बैठ कर खा लेता हूँ लेकिन मेरी आसानी के लिए किचन में ही सेफ्टी चेअर जो सिर्फ मेरे लिए ही है, उस में बैठ कर ही मज़े से खाने का आनंद लेता हूँ। एक तो खाते खाते कभी कभी अचानक मुझे खांसी शुरू हो जाती है जो रुकने का नाम नहीं लेती। यूं तो कोई कुछ नहीं कहता लेकिन मुझे अंदर ही अंदर घुटन सी होने लगती है। इस लिए अकेला ही खाना पसंद करता हूँ और यह मेरी एक प्राइवेसी सी भी हो जाती है। कारण और भी है की शुरू से ही मैं बहुत धीरे धीरे मज़े ले कर खाने का मज़ा लेता हूँ। मैं खाता नहीं हूँ , खाने का मज़ा लेता हूँ। अगर सब के साथ एक टेबल पर बैठ कर खाऊं तो सभी खाना खत्म करके कभी के उठ जाते हैं और मेरी पलेट अभी भी भरी होती है। इस से मेरे खाने का मज़ा किरकिरा हो जाता है। किचन में कोई मजबूरी नहीं होती, उठने के लिए मेरा अपना ही वक्त होता है। आज सुभाह दही के साथ आलू के पराठे थे और यह मेरे बहुत ही पसंदीदा हैं। आज तो और भी ज़्यादा वक्त लूंगा। इस लिए आज मैं मज़े से अपनी कुर्सी पर विराजमान हो गया। अब मैं सोचने लगा की दही में नमक मसाला पाऊं या न पाऊं। कुछ दिन पहले टीवी पे इंडिया के एक चैनल में बातें हो रही थीं की दही में नमक डालने से इस के अच्छे बैक्टीरिआ नाश हो जाते हैं। डालूं या ना डालूं, मैं सोचने लगा। कुछ देर बैठा सोचता रहा, फिर काली मिर्च की शीशी उठा कर, चमच से काली मिर्च डालने ही लगा था की रुक गया। सोचा, बैक्टीरिआ तो काली मिर्च से भी मर जाएंगे। किया सोच रहे हो, अचानक अर्धांग्नी साहिबा किचन में दाखल होते हुए बोली। “कुछ नहीं ” कह कर मैं, दही में ” कुछ ” नहीं डालने का मन बना कर पराठा खाने लगा क्योंकि याद आ गया कि नमक मसाला तो पहले से ही पराठे में डाला हुआ था, फिर दही में डालने की क्या जरूरत थी। पहला निवाला दही के साथ मुंह में डाला तो लगा जैसे जीभ पर्सन हो गई हो, इतना मज़ा आने लगा की इस दही में से छतीस प्रकार के भोजनों का आनंद आने लगा। अक्सर कहा जाता है की भोजन को बत्तीस दफा चबाना चाहिए। आज मैं गिनती करने लगा कि यूं तो बहुत दफा खाने को चबाता हूँ लेकिन आज मुझे पता चलना ही चाहिए की कितनी दफा चबाता हूँ। मैं गिनने लगा। जैसे जैसे गिनता गया, मैं हैरान होने लगा की यह तो पचास से भी ऊपर हो गया। वाह ! यह तो मैंने कभी सोचा ही नहीं था की इतनी दफा भोजन को चबाता हूँ। इसी लिए तो कभी मुझे कब्ज़ की शिकायत नहीं हुई। आज तो वक्त भी नोट करूँगा की कितनी देर भोजन समाप्त करने को लगी। अब हुआ दस बज कर दस मिंट और शायद दस बजे खाना शुरू किया होगा। चलो समझ लो दस बजे शुरू किया और मैं खाने लगा। खाते खाते मैंने देखा प्लेट के आगे कुछ काला सा धब्बा पढ़ा था। मेरी नज़र बहुत तेज है। किया होगा यह, सोचने लगा। किसी कपड़े से गिरा कुछ कुछ होगा या किसी फ्राई पैन का निशान लग्ग गया होगा। नहीं, यह नहीं हो सकता। किसी जली हुई रोटी से गिरा होगा। नहीं यह भी नहीं हो सकता। क्यों नहीं हो सकता, हो तो सकता है, रोटी खाते वक्त किसी रोटी में से जले हुए हिस्से का कोई पार्टिकल गिर गया होगा। हवा में डस्ट पार्टिकल्ज़ होते हैं, सायंस में पढ़ा हुआ है। अचानक यह धब्बा हिला। मेरे मुंह की सांस से हिला होगा। अरे अरे ! यह तो चल रहा है। समझ आ गया, यह कोई कीड़ा है और चींटी से भी आधा होगा, नहीं नहीं, आधे से भी आधा होगा।
अब मैं यह देखने लगा की यह किस ओर चलता है। हरकत कुछ तेज हो गई और मेरा सारा धिआन इस की ओर हो गया। विचार आया कि देखूं, यह सीधा चलता है या घूम घुमा कर चलता है। ध्यान से देखता हुआ महसूस किया कि न तो घूम घुमा कर चलता है, न सीधा चलता है। चलता जाता है लेकिन इस की चाल सीधी नहीं। सोचा, अगर इस के नीचे कुछ पाऊडर विछा हो तो उस पर ग्राफ जैसी लकीर बन जायेगी। चलता जा रहा है और आगे दीवार है जिस पर टाइलें हैं। अब यह वापस आएगा, हो सकता है, नहीं भी हो सकता, चलो देखते जाओ, आज इस की सीआईडी करनी ही करनी है। लो, यह तो टाइल के ऊपर चढ़ने लगा है। यार ! तेरी टांगें तो दिखाई नहीं देती, कितनी टांगें होंगी, छै आठ तो होगी ही। सीधा चलता चलता यह दीवार की टाइलों पर चढ़ने लगा। टाइलों का साइज़ कितना होगा, होगा कोई चार बाई चार इंच। एक टाइल चलने में कितने सैकंड लेगा ! बीस सैकंड लगे, नौट बैड स्पीड। अब दुसरी टाइल पर चढ़ कर वापस मुड़ने लगा है , अरे कुछ याद आ गया ? गर्ल फ्रैंड की याद आई होगी। हा हा, किया पता यह अभी जवान न हुआ हो। नर होगा या मादा। चलो इस से किया लेना देना। अगर गर्ल फ्रैंड होगी तो किया यह मुझे बताएगा ? कैसी बातें सोच रहा हूँ, भाई मन ही तो है, कौन कोई अंदर झाँक के देख सकता है। अरे अरे अरे, यह तो उड़ गया, ओह तेरे की। उड़ कर अब दुसरी दीवार पर बैठ गया है। अब थक गया होगा। नहीं, यह तो दुसरी उडारी मार कर प्लांट के पत्ते पर बैठ गया। भाई, तू तो छुपा रुस्तम निकला। अरे अरे, यह तो पत्ते के नीचे लटक रहा है, नीचे आ गया, अब और नीचे आ गया। ओह माई गौड, यह तो स्पाइडर का बच्चा है, पीछे तार छोड़ता हुआ नीचे की ओर आ रहा है। अब इसे डिस्टर्ब नहीं करूँगा। अब यह अपना ताना बाना बुनेगा। इस को अपना काम करने दो और मैं अब अपना दही पराठा मज़े से खाता हूँ। पत्नी साहिबा बाहर से आ कर खड़ी मुस्करा रही है। कुछ देर बाद बोली, आप को पौना घंटा हो गया ब्रेकफास्ट करने को, आज किया सोच रहे हो ? हँसता हूँ ,” कुछ नहीं ” और मैं दही पराठे के मज़े में मगन हो गया।
बहुत बहुत धन्यवाद लीला बहन , इस सच्ची कथा को मैंने लिखने का मन बनाया और खूब बन गई और मुझे अभी तक हंसी आती है . बहुत बहुत धन्यवाद जी .
बहुत खूब भाईसाहब! आपकी कहानी (इसे मैं कहानी मान रहा हूँ) अच्छी लगी. आप वास्तव में बहुत जिंदादिल इंसान हैं और यही जिन्दादिली आपकी ताकत है.
हा हा , विजय भाई, हुआ तो बिलकुल ऐसा ही था .कुछ दिनों बाद मैंने इस को लिखने का मन बना लिया और बाद में पढ़ कर मुझे खुद को ही हंसी आ गई .
प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको एक बार स्पाइडर ने इतनी अच्छी रचना लिखने की प्रेरणा दी. “कुछ नहीं “, “कुछ नहीं “ कहते हुए आप बहुत कुछ कह गए और बहुत अच्छा कह गए. इतनी रोचक व प्रेरणादायक रचना के लिए बहुत-बहुत बधाइयां व शुभकामनाएं.