घनाक्षरी
प्रेम के भी रंग – ढंग कैसे हैं प्रसंग सब।
बात – बात पर चल जाती यहाँ गोली है।।
ऋद्धि-सिद्धि सुख-शांति कैसे आये पास जब।
फणि फुँफकार जैसी विष भरी बोली है।।
सारा सत ज्ञान लिये गीता है कुरान यहाँ।
किंतु धर्म – नाम पर हो रही ठिठोली है।।
पायेगा न श्याम जैसा प्रेम अब कहीं कोई।
राधिका सी साधिका न कहीं मीरा भोली है।।
— शुभा शुक्ला मिश्रा ‘अधर’