वक्त
अब तो खत नही आते,
अब तो खत नही जाते,
जो दिल से निकलते थे,
अब वो बोध नही आते।
अब कहाँ दिल धड़कते है,
अब कबूतर कहाँ उतरते है,
कहाँ कौवे संदेश देते है,
अब कहाँ हम लरजते है।
आधुनिक समान भर बैठे,
वो अपने हम अपने घर बैठे,
अब तो नया जमाना है,
किसको कहाँ जाना है ।
अब रोज बात होती है,
फोन मे सुबह शाम होती है,
सिमट गयी है जिंदगी ऐसी,
निगाह बे लगाम होती है।
जमाना बदला,सोच बदली है,
दौड़ती दुनिया, रफ्तार बदली है,
किस को फुरसत है गम सुनने की,
जब खुद की हालत पतली है।
हृदय जौनपुरी