बेचैन मन!
है नीद नहीं अब आँखों में ,
अब चैन नहीं ,बेचैन हु मै |
अब राह दिखा दो गिरधारी ,
निराश और लाचार हु मै ||
जो राह दिखाई अर्जुन को ,
अब राह वही बतला लेना |
अपनों का खून करे अपना ,
मुझे ज्ञान जरा समझा देना ||
हालात वही फिर कलयुग में ,
फिर चीर हरण की बारी है |
हालात का मारा वीर पुरुष ,
नंगी होती फिर वही नारी है||
जब क्षत्रिय मौन सभा में हो ,
समझो कोई मजबूरी है |
तुम रहे हो रक्षक हर युग में ,
फिर बोलो क्यों ये दुरी है ||
तुम आते हो तो आ जावो ,
बरना भरोसा टूट जायेगा।
नर-नारी गर दुखी रहे सब,
फिर तुमको कौन बुलायेगा।।
है नीद नहीं अब आँखों में ,
अब चैन नहीं ,बेचैन हु मै |
अब राह दिखा दो गिरधारी ,
निराश और लाचार हु मै ||
ह्रदय जौनपुरी