बाल कविताशिशुगीत

राखी बांधने आई हूं

मैं तेरी छोटी-सी बहिना,
राखी बांधने आई हूं,
रेशम-डोर न इसे समझना,
प्यार बांधने आई हूं.
बड़े जतन से मैंने बनाई,
भैय्या राखी प्यारी-सी,
जल्दी से राखी बंधवा लो,
कहती बहिन दुलारी-सी.
हरा-भरा हो प्यार हमारा,
देने यह पावन संदेश,
रक्षा बंधन पर्व है आता,
चाहे बहिन बसी परदेश.

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244

3 thoughts on “राखी बांधने आई हूं

  • गुरमेल सिंह भमरा लंदन

    राखी दिवस पर लिखी बहुत सुन्दर कविता लीला बहन . राखी दिवस की आप को ढेरों मुबारकें .

    • लीला तिवानी

      प्रिय गुरमैल भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको ब्लॉग बहुत अच्छा लगा. ब्लॉग का संज्ञान लेने, इतने त्वरित, सार्थक व हार्दिक कामेंट के लिए हृदय से शुक्रिया और धन्यवाद.

  • लीला तिवानी

    बोयी जा सकने वाली राखी: वर्षों तक हरा-भरा रहेगा भाई-बहन का प्यार

    अब बोयी जा सकने वाली राखी उपलब्ध है जिसमें बीज होते हैं। ऐसी राखियां कभी खत्म नहीं होती बल्कि समय के साथ बढ़ती, फलती-फूलती जाती हैं और एक पौधे के रूप में नया जीवन पा लेती हैं।

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