गीतिका/ग़ज़ल

जन्म दाता हे पिता तुम

जन्मदाता हे पिता तुम भूमि पर वरदान हो।
घर चमन के मुग्ध माली हम गुलों की जान हो।

शक्त पालक तुम हमारे मित्र सबसे हो अहम
गर्व है तुम पर हमें जीवन की तुम पहचान हो।

प्रेम, संतति हित तुम्हारा, जानती बेटी पिता
फर्ज़ के कटु आवरण में, मोम सी मुस्कान हो।

सद्गुणों के सार को, विस्तार तुमसे ही मिला
जन्म से थे मूढ़ हम, तुम गूढ़ अन्तर्ज्ञान हो।

क्या नहीं संस्कार तुमसे, पा लिए हमने भला
तुम गुरू शिक्षक तुम्हीं, तुम वेद हो व्याख्यान हो।

पथ प्रदर्शक तुम हमारे, मंज़िलें तुमसे मिलीं
गुत्थियों का हल सरलतम, तुम गणित विज्ञान हो।

रक्ष तुमसे संगिनी, बेफिक्र है संतान भी
तुम कवच परिवार के, पुख्ता अडिग चट्टान हो।

-कल्पना रामानी

*कल्पना रामानी

परिचय- नाम-कल्पना रामानी जन्म तिथि-६ जून १९५१ जन्म-स्थान उज्जैन (मध्य प्रदेश) वर्तमान निवास-नवी मुंबई शिक्षा-हाई स्कूल आत्म कथ्य- औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद मेरे साहित्य प्रेम ने निरंतर पढ़ते रहने के अभ्यास में रखा। परिवार की देखभाल के व्यस्त समय से मुक्ति पाकर मेरा साहित्य प्रेम लेखन की ओर मुड़ा और कंप्यूटर से जुड़ने के बाद मेरी काव्य कला को देश विदेश में पहचान और सराहना मिली । मेरी गीत, गजल, दोहे कुण्डलिया आदि छंद-रचनाओं में विशेष रुचि है और रचनाएँ पत्र पत्रिकाओं और अंतर्जाल पर प्रकाशित होती रहती हैं। वर्तमान में वेब की प्रतिष्ठित पत्रिका ‘अभिव्यक्ति-अनुभूति’ की उप संपादक। प्रकाशित कृतियाँ- नवगीत संग्रह “हौसलों के पंख”।(पूर्णिमा जी द्वारा नवांकुर पुरस्कार व सम्मान प्राप्त) एक गज़ल तथा गीत-नवगीत संग्रह प्रकाशनाधीन। ईमेल- [email protected]