हवा का झोंका
” झोंका हवा का ”
हवा का एक झोंका हूँ मैं
आगे बढ़ता जाता हूँ
मुड़कर देखना मेरा स्वभाव नहीं
तभी मंजिल पाता हूँ ।
मेरे आवेग के आगे
कोई ठहर नहीं पाता
खड़ा हुआ जो विघ्न बनके
पल में है ढह जाता ।
अपने कर्म पथ पर चलूँ
है यही मेरा सिद्धांत
पूर्ण न कर लूँ कर्म जब तक
रहता है मन मेरा अशांत ।
होता है मन जब शांत मेरा
शीतलता प्रदान करता हूँ
चुरा कर फूलों से सुगंध
चहुँ दिशा महकाता हूँ ।
बीच सफर में थककर
बैठना मेरा काम नहीं
मंजिल तक पहुँचे बिना
लेता मैं विश्राम नहीं ।
सिखलाता हूँ सबको मैं
निरन्तर चलना ही है जीवन
ठहर जाना मृत्यु समान
निरन्तरता है जीवन दर्शन ।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना की कलम से ।