सफलता की सितार: रुक्मिणी रियार
बड़ी मुश्किल से रुक्मिणी रियार को विश्वास हो पाया था, कि उसने बिना किसी कोचिंग और गुरु के पहली बार में ही आईएएस परीक्षा में दूसरा स्थान हासिल किया. विश्वास होता भी तो कैसे! वह छठी क्लास में फेल जो हुई थी! उफ़्फ़, उन दिनों की याद कितनी पीड़ादायक थी!
छठी कक्षा में वह फेल हो गई थी, परिणाम स्वरूप उसे डलहौजी के सेक्रेड हार्ट स्कूल में भेजा गया था. बोर्डिंग स्कूल के दबाव को झेलना उनके लिए मुश्किल हो गया था. पढ़ाई में रुचि कम होने लगी.
तभी उसने इंग्लैंड के एक वैज्ञानिक सर आइज़ैक न्यूटन की जीवनी पढ़ी. बचपन में न्यूटन ठीक से बोल भी नहीं पाते थे, पढ़ाई में बेहद कमजोर, लेकिन बाद में उन्होंने गुरुत्वाकर्षण के नियम और गति के सिद्धांत की खोज की.
पढ़ाई में नाकारा आइंस्टाइन रोज़ाना दस घंटे सोते थे, तो क्या हुआ? वे महान जीनियस निकले. मौत के बाद उनके दिमाग को संभालकर रखा हुआ है. ऐसे ही शुरु में अमिताभ बच्चन की नाकामी और ऋतिक रोशन के ठीक से न बोल पाने पर भी सिने जगत में कमाल की कामयाबी हासिल करने के किस्से उसने पढ़े और उनसे प्रेरणा ली.
फिर भी कभी-कभी उसे छठी कक्षा में फेल होने का वह किस्सा याद आता और सताता. तभी उसने कहीं पढ़ा-
अगर आप FAIL होते हैं तो, निराश मत होइए.
F. A. I. L का अर्थ है, “FIRST ATTEMPT IN LEARNING.”
END का अर्थ समाप्ति नहीं है,
वास्तव में F. N. D. का अर्थ है, “EFFORT NEVER DIES.”
अगर आपको कहीं से उत्तर NO में मिलता है,
तो याद रखें, N.O. का अर्थ है, “NEXT OPPORTUNITY.”
इसलिए आइए सकारात्मक बनें.
इसके बाद असफलता को उन्होंने अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया. इसी अनमोल वचन को उन्होंने अपनी प्रेरणा बना लिया और यह तय कर लिया कि बहाने बनाने या दूसरों को दोष देने से कोई फायदा नहीं. यदि ठान लें तो असफलताएं हमारा रास्ता कभी नहीं रोक सकतीं. धैर्य और योजना के साथ तैयारी की जाए तो दुनिया की किसी भी परीक्षा में पास होना संभव है. असफलता ने उसे इतना मजबूत बना दिया कि वह हर काम पूरी तैयारी के साथ करने लगी.
इसी सकारात्मक सोच का परिणाम था, कि वह सफलता की सितार बजा सकी. चंडीगढ़ की शान रुकमणी रियार शैक्षणिक उपलब्धियां भी हासिल कर चुकी है और गोल्ड मेडलिस्ट भी रह चुकी है. उसने IAS में किया टॉप, वह भी बिना कोचिंग के.
रुक्मिणी रियार की असाधारण उपलब्धियां और देशभक्ति-
चंडीगढ़ में पैदा हुई रुक्मिणी रियार ने आईएएस परीक्षा में शामिल होने से पहले उन्होंने कई एनजीओ के साथ काम किया, ताकि देश की हालत को सुधारा जा सके. वो बचपन से देश की सेवा करना चाहती थीं और इसी ख्वाब को साथ रखकर उन्होंने झंडे गाड़े. कड़ी मेहनत और दृढ़-निश्चय से ये मुकाम हासिल किया.