गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ए दर्द मुझे बाहों में ले मैं तुझसे लिपटकर सो जाऊं
तेरी आगोश में यूं बिखरूं  मैं कतरा कतरा हो जाऊं

कब खुदसे खुदकी बात करूं ना महफिल है ना तनहाई
ऐसे आलम में डरती हूं कहीं खुद से खफा ना हो जाऊं

लिख तो मैं रही हूं अफसाना खून ए जिगर की स्याही से
पर क्या जाने कब दिल से तेरे मैं गुजरा फसाना हो जाऊं

कभी याद करेगी ये दुनिया जो दौर है अपनी चाहत का
जी करता है इन पन्नों पर मैं एक जमाना हो जाऊं

मैं दर्द में डूबी एक सरगम मुझे सांस में अपनी जिंदा रख
जो लब से दिलों में उतर सके मैं वही तराना हो जाऊं।

तू जख्म पे जख्म लगा ‘जानिब’ दिल सहने का आदी है
है मौत भी अब मंजूर मुझे गर तेरा निशाना हो जाऊं

पावनी जानिब सीतापुर

*पावनी दीक्षित 'जानिब'

नाम = पिंकी दीक्षित (पावनी जानिब ) कार्य = लेखन जिला =सीतापुर