कविता

प्रभात

मुर्गे के बाँग लगाने पर तारों ने है दीप बुझाया।
विहगों के जागृति गान पर जग में कलरव छाया।
कोक-कोकी का मिलन हुआ, विरह वेदना दूर हुई।
जगे खेत, ताल, वन, उपवन, अलि गुंजन भरपूर हूई।
मंद पवन की गति पाकर तरुओं ने ली अँगड़ाई।
नभचरों ने उड़ नीलगगन में अपनी खुशी जताई।
उदित बालरवि उदयाचल में सौभाग्य बना प्राची का।
निकली अरुणिम आभा उससे परिधान बनी नववधू का।
सूर्य-किरण संग कलियों ने सीख लिया है मुसकाना।
पुष्पोें संग अलियों ने भी गाया एक मधुर गाना।
रवि की शुभ्र किरण पाकर जड़ हो चेतन में साकार।
तरल होकर हिमगिरि से निकली हिम की सुखद धार।
स्तब्ध विश्व ध्वनित हो उठा न्दियों के कलकल निनाद से।
गूँज उठे रचना के स्वर तट पर, हो परे हर्ष-विषाद से।
क्षिति में, जल में, नभ में और अनिल अनल में।
नव किसलय-सी नई उमगें र्हुइं जाग्रत जन-जन में।

— प्रियंका विक्रम सिंह, बांदा

प्रियंका विक्रम सिंह

फतेहपुर की मूल निवासी प्रियंका की शिक्षामित्र रहते हुए कविता लिखने की ओर रुचि जाग्रत हुई। बच्चों से मित्रवत् व्यवहार रखते हुए उनके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था के लिए सदैव प्रयासरत हैं । 2015 से बांदा जिले के नरैनी विकासखंड में शिक्षिका के रूप में काम करते हुए रचनाकर्म में संलग्न हैं। काव्य संकलन "हाशिए पर धूप" में कविताएं शामिल हैं। 'दैनिक विजय दर्पण टाईम्स' (मेरठ) में रचनाएं प्रकाशित।