गीत : ठण्ड ने दस्तक दी
ठण्ड ने दस्तक दी , फिर अपने उसूलों पर ।
बाँहों में भरने को आतुर , सुर्ख वर्ण फिजाओं को।
रवि की सुनहरी किरणों को , नभ-धरा चहुँ दिशाओं को ।
ओस की बूंदें दिखी उसे , खिलते हुए फूलों पर ।
ठण्ड ने दस्तक दी , फिर अपने उसूलों पर ।
मध्यदिवस की धूप को , वह अपने गले लगा ली ।
सर्वत्र और कण-कण पर , वह अपनी जगह बना ली ।
बैठ गयी अब वह जैसे , तरुशाख के झूलों पर ।
ठण्ड ने दस्तक दी , फिर अपने उसूलों पर ।
सांध्यबेला को समा गयी , हाट-बाजार और मंडियों में ।
गाँव की गलियों में , चौबारे और पगडंडियों में ।
नजरे टिकी अब उसकी , ताल छोड़ते बगुलों पर ।
ठण्ड ने दस्तक दी , फिर अपने उसूलों पर ।
— टीकेश्वर सिन्हा ” गब्दीवाला “