कविता

हम हिंदुस्तानी

हम हैं हिंदू ,मुसलमान,सिख,इसाई
बोलो कौन है फिर हिंदुस्तानी,
बांट ना इस देश को टुकड़ों में
बन ना तू मानव इतना अभिमानी।
मिला है मानव जन्म तू‌झे तो
इस बात का मान जरा एहसान,
करम है तुझ पर दाता का
रख ले उस करम का तू मान।
हम ब्राह्मण,क्षत्रिय,कायस्थ,शूद्र
कैसे करें सच्चे मानव की पहचान,
एक ही ईश्वर ने रचा हम सबको
हम सभी हैं उस दाता की संतान।
भेदभाव से होती नहीं भलाई
ना उसमें है किसी की गरिमा,
करके सत्कर्म जो महान बने
रह गई उनकी जग में महिमा।
सबके रगों में बहता रक्त का रंग
एक ही होता है, वह है लाल,
ह्रदय में बहती जो प्रेम की गंगा
एक सी ही होती है उसकी चाल।
कोई है गोरा, कोई है काला
रंगों से ना होती मानव की पहचान,
अंतस में जले जब ज्ञान की ज्योति
व्यक्तित्व होता है तभी दीप्तिमान।
शिक्षित, अशिक्षित का भेद करे ना
जो है सच्चा ज्ञानी और महान,
जो पढ़े ढाई आखर प्रेम का
वही होता है जग में सच्चा विद्वान।
अनेकता में एकता का ऐसा परिदृश्य
जग में नहीं होता कहीं दृष्टिगोचर,
अलग भाषा,अलग संस्कृति फिर भी
रहते हैं ऐसे, जैसे सब है सहोदर।
हिंद वासियों का है परम कर्तव्य
इस एकता को अटूट बंधन में बांधना,
दिन प्रतिदिन प्रगति की ओर बढ़े देश
ऐसा कर्म है हमें मिलकर साधना।

पूर्णतः मौलिक –  ज्योत्सना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]