गज़ल
हम ढली हुई लहरों में दिखे दखल आरज़ू
क्या किसी सफ़ीने को आरज़ू-ए-साहिल है
जिंदगी खड़ी देखे शामिल अगर मुश्किल
नाव खोजता पाया अहम ओहदा ले शातुर है
हो रही उदासी मुख जख्म लिये आहत हैं
हैं ज़हर फजाओ जीना बना अब मुश्किल है
रंग ओ बू में डूबे लगे जब निहायत से
हाय ये दिखावा भी राजसी सा शामिल है
मुझको तू यूं लगता है, जैसे मेरा साहिल है
रेखा ज़िन्दगानी है, तू ही मेरा हासिल है
— रेखा मोहन