कविता

सपनों का जहान

आओ फूलों सा हंसे
और सब को हंसना सिखाएं,
खुद खुशी से जिए और
सबको जीना सिखाए।

पल दो पल की है जिंदगानी
उसे रो कर ना गवाएं,
आज का पल है हाथों में
कल आए कि ना आए।

गुम है जो गम के अंधेरे में
उन्हें उजाले का पता बताएं,
खिली ना जहां खुशी की कलियां
उजड़े बाग को गुलशन बनाएं।

भूखा है जग मीठे बोल का
मधुर वाणी से उसे अपना बनाएं,
हिंसा, द्वेष, घृणा की भूमि पर
प्यार और इमान की फसल उगाएं।

बारूद के ढेर पर बैठी दुनिया
शांति का उसे पाठ पढ़ाएं,
विहग की भांति आजाद गगन में
उड़े हर कोई पंख फैलाए।

आओ मिलकर हम सब
एक ऐसी सुंदर जहां बनाएं,
रात को सोए चैन की नींद
दिन में किसी से खौफ ना खाएं।

पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।

*ज्योत्स्ना पाॅल

भारतीय स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त , बचपन से बंगला व हिन्दी साहित्य को पढ़ने में रूचि थी । शरत चन्द्र , बंकिमचंद्र, रविन्द्र नाथ टैगोर, विमल मित्र एवं कई अन्य साहित्यकारों को पढ़ते हुए बड़ी हुई । बाद में हिन्दी के प्रति रुचि जागृत हुई तो हिंदी साहित्य में शिक्षा पूरी की । सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा, रामधारी सिंह दिनकर एवं मैथिली शरण गुप्त , मुंशी प्रेमचन्द मेरे प्रिय साहित्यकार हैं । हरिशंकर परसाई, शरत जोशी मेरे प्रिय व्यंग्यकार हैं । मैं मूलतः बंगाली हूं पर वर्तमान में भोपाल मध्यप्रदेश निवासी हूं । हृदय से हिन्दुस्तानी कहलाना पसंद है । ईमेल- [email protected]