नज़्म
बह रही आजकल कड़वी हवा
अब मौसम भी बेघर होने लगे हैं।
गैरों की बात कहे कौन नदां
अब तो अपने भी डसने लगे हैं।
रस्ता रोके खड़ी जहरीली हवा
डगमगाते हुए निकलने लगे हैं।
बेशक चले वो काटते दरख्तां
पथरीले पथ बहकने लगे हैं।
निकले पूछने हाले दिल दवा
फरिश्ते कमजोर पड़ने लगे हैं।
कौन किसकी सुने दिले दास्ताँ
सबको किस्मत के छाले लगे हैं।
आपाधापी में फुर्सत किसे कहाँ
पकीजा पल वो ढूंढने लगे हैं।
किसी का किसी से नहीं वास्तां
बेहिसाब दुनिया में रमने लगे हैं।
— निशा नंदिनी
तिनसुकिया, असम