यमुना की सबसे बड़ी दुश्मन दिल्ली
कल के समाचार पत्रों में यमुना की दुर्दशा का मुख्य कारण भारत की राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली को ठहराया गया है। समाचारों के अनुसार यमुना अपनी कुल लम्बाई 1370 किलोमीटर में मात्र 22 किलोमीटर दिल्ली के किनारे से गुजरती है, जो उसकी कुल लम्बाई के मात्र 1.6 प्रतिशत है, फिर भी उसके 76 प्रतिशत प्रदूषण की जिम्मेदार दिल्ली शहर से निकलने वाले नालों के प्रदूषित रासायनिक और मनुष्य जनित मल-मूत्र और अन्य जहरीले पदार्थों हैं। यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए आश्चर्यजनक रूप से अब तक 2962 करोड़ रूपये मतलब, 29620000000 रूपये उन्नतीस अरब बासठ करोड़ रूपये खर्च भी हो गये, सबसे बड़े दुख की बात यह है कि समाचार पत्रों के अनुसार वर्तमान समय में यमुना का प्रदूषण स्तर विगत् सालों से दुगुने स्तर तक बढ़ गया है, तो प्रश्न ये उठता है कि ये अरबों रूपये जो यमुना को प्रदूषण मुक्त होने के नाम पर खर्च किया गया, वह कहाँ गया? वह नेताओं, अफसरों और ठेकेदारों की बदनाम ‘ तिकड़ी ‘ की जेब में तो नहीं चला गया?
हमारे देश का सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि हम दुनियाभर में अपने और अपने देश को सबसे बड़े अध्यात्मिक ज्ञान वाले और विश्व गुरू होने का नाटक तो खूब करते हैं, परन्तु व्यवहार में हम और हमारे देश जैसा भ्रष्ट, रिश्वतखोर, ढोंगी और अव्यवस्था का शिकार दुनिया में शायद ही कोई अन्य देश हो ! उदाहरणार्थ ब्रिटेन में बहने वाली टेम्स नदी भी 1858 में रासायनिक कचरे और वहाँ के शहरों से निकने वाले मानवजनित प्रदूषण से इतनी प्रदूषित हो गई थी, कि उसके किनारे स्थित ब्रिटिश पार्लियामेंट को उसमें से निकलने वाले भयंकर बदबू से संसद की कार्यवाही तक को स्थगित कर देना पड़ा था, उसे मृत नदी घोषित करना पड़ा था, परन्तु आश्चर्यजनक रूप से वहाँ की सरकार, वहाँ का समाज और वहाँ के लोगों की ईमानदारी, मजबूत इच्छाशक्ति और कठोर कानून से ‘ वह मृत नदी ‘ अब पुनर्जीवित होकर अपने मूलस्वरूप में आ गई है, इसके लिए उन्होंने उसके किनारे स्थित शहरों के सीवेज प्लांट्स को ईमानदारी से प्लानिंग करके, उसमें से परिशोधित पानी को ही अपनी प्रिय नदी टेम्स में गिरने देते हैं, इससे कम पर कोई समझौता नहीं होता, आज टेम्स में एक भी गंदे नाले का निकास नहीं है।
इसी प्रकार यूरोप की 1233 किलोमीटर लम्बाई वाली व स्विट्जरलैंड-आस्ट्रिया-जर्मनी-फ्रांस और नीदरलैंड से बहने वाली यूरोप की बड़ी नदी राइन नदी के किनारे 950 से अधिक फैक्ट्रियां हैं, दुनिया की सबसे बड़ी केमिकल फैक्ट्री ‘ बीएएसएफ ‘, जिसमें 35000 कर्मचारी काम करते हैं, जो 10 वर्ग किलोमीटर में फैली है, इसमें 160 उत्पादन संयन्त्र हैं, परन्तु आज यह फैक्टरी अपना एक बूंद भी प्रदूषित पानी राइन में बगैर परिशोधन के नहीं गिराती। इस तरह के दुनिया में और भी कई उदाहरण हैं, जहाँ अत्यन्त प्रदूषित और लगभग मृत हो चुकी नदियों को पुनर्जीवन प्रदान किया गया है जैसे, दक्षिण कोरिया की हान और अमेरिकी नदी मिलवाकी, यूरोप की बड़ी नदी राइन आदि नदियों को आज अपने मूल प्राकृतिक स्वरूप में लौटा दिया गया है, जबकि यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर अरबों रूपये डकारने और जेब में भरने के बाद भी उसमें अभी भी दिल्ली के 17 नाले, एक लाख औद्योगिक फैक्ट्रियां प्रतिदिन अपने 7.15 करोड़ केमिकल व प्रदूषण युक्त गंदा पानी प्रतिदिन यमुना में अभी भी डालतीं हैं, इसके अतिरिक्त हर साल 1.31 लाख टन प्लास्टिक कचरा नालों के जरिये देश की राजधानी दिल्ली यमुना में डालती है। हमारे इन कुकृत्यों से यमुना और मैली होने को अभिषप्त है। विडम्बना और दुख है कि हर साल यमुना को प्रदूषण मुक्त करने की कसमें खाईं जाती हैं, फीते काटे जाते हैं और यमुना प्रदूषण मुक्ति के नाम पर करोडों-अरबों रूपये भ्रष्टाचारी व्यवस्था और ढोंगी त्रयी द्वारा डकारने का सिलसिला चलता रहता है, ऐसे तो यमुना अनन्तकाल तक भी प्रदूषण मुक्त नहीं होगी अपितु और अधिक गंदा होकर एक गंदे नाले के रूप में बहती रहने को अभिषापित होती रहेगी !
— निर्मल कुमार शर्मा, गाजियाबाद