पिता जी।
सुमन ने जैसा ही दरवाजा खोला, पिताजी ने प्यार से सिर पर हाथ फेरा। सुमन की ताक़त यही थी, पिताजी का विश्ववास और साथ। सुमन की पढ़ाई पूरी हो चुकी थी, अब रोज़ कहीं न कहीं नौकरी के लिए कोशिश कर रही थी। घर के हालात देखकर उसका मन करता था आज ही काम मिल जाए और वो अपने रिटायर्ड पिता जी का हाथ बंटा सके। इतनी महंगाई के जमाने में आधी तनख्वाह पर घर कैसे चले, माँ तो थी नहीं दो बहने थी और पिताजी । सुमन घर का भी काम करती छोटी बहन की पढ़ाई का भी ध्यान रखती और पिता जी का भी। पिताजी चाहते थे कि दोनो बेटियां नौकरी करें और खुद को संभाल सके साथ में हर मुश्किल वक्त़ का सामना कर सकें। सुमन भी यही चाहती थी कि पिताजी पर बोझ न बने, कम से कम जब तक शादी न हो घर को भी अच्छे से संवार सके और अपना खर्चा खुद उठाए ,पिताजी को भी कुछ राहत हो।
रसोईघर में काम करते करते अचानक फोन की घंटी बजी, कुछ दिन पहले यहां फार्म भरा था वहाँ से काॅल थी। सुमन की खुशी का ठिकाना नहीं रहा, पिताजी मुझे नौकरी मिल गई कल ही भुलाया है। पिताजी खुश थे कि सुमन को शादी के बाद कोई भी मुश्किल नहीं होगी, सुमन खुश थी कि पिताजी को थोड़ी राहत होगी कम से कम अपना खर्च तो उठा सकेगी और पिताजी का साथ भी दे सकेगी। बात तो एक थी बस सोच का फर्क था बस सुमन का और पिताजी का। सुमन सारा दिन खुशी से काम करके सुबह निकल गई आज पहला दिन था उसके सपने पूरे होने वाले थे वो पिताजी को कोई कमी नहीं महसूस होने देना चाहती थी। दिन गुजरें महीना हो चला था हाथ में बीस हज़ार रुपए थे और सपनो को पूरा करने की लम्बी लिस्ट, पहले पिताजी के लिए सुंदर कुरता पायजामा लिया. फिर एक कोट जो उन्होने मंहगा होने पर “मैं यह नहीं पहनता” कहकर छोड़ दिया था। फिर छोटी बहन के लिए भी सुंदर कुरती ली, साधारण सी कुरती में उसके चेहरे पर वो रौनक नहीं आती अब वो गुड़िया लगेगी।
जल्दी जल्दी घर पहुंची तो कदम थोड़े से रुक गए पिताजी पड़ोस के अंकल आंटी से उनके किसी रिश्तेदार के लड़के के बारे में बात कर रहे थे। लड़का शायद सुमन को आफिस में ही देखकर पसंद कर चुका था, पिताजी यही कह रहे थे जब तक सुमन पसंद नहीं करेगी मैं कोई जवाब नहीं दूंगा। मैं तो बस यही चाहता था कि यह आत्मनिर्भर हो जाए तो इसकी पसंद से जल्दी इसकी शादी कर दूं सुमन को सामने आता देखकर वो चुप हो गए. सुमन आते ही रसोईघर में चली गई सबके लिए चाय बनाई, आंटी ने सुमन से सारी बात कह दी- बेटा माँ होते तो तुम से पूछती? लड़के की तस्वीर है मेरा पास उन्हें तुम पसंद हो तुम्हारे पिता जी को भी सब पसंद है, पर वो चाहते हैं कि तुम्हें पसंद होगा तब बात आगे बड़ेगी। तेरी जिम्मेदारी से मुक्त हो तो दूसरी बहन का भी सोचे।
सुमन अब पिताजी के साथ रह कर उन्हें खुशियाँ देना चाहती थी पर यहां तो पिता जी आज भी उनकी खुशियाँ ढूंढने में सोच रहे थे। सब कुछ समय से हो जाए मेरा बेटियों को माँ की कमी महसूस न हो। सुमन की आँखें भर आईं, उसने फंट अच्छे से नहीं देखी पर जब हल्की सी नज़र पड़ी तो यह वही लड़का था जिसे सुमन भी पसंद करती थी, जिसने तीन साल पहले सुमन के सामने शादी का प्रसताव रखा था पर सुमन ने मना कर दिया था. वो पिताजी के लिए कुछ करना चाहती थी, उन्हें बहुत सी खुशियाँ देना चाहती थी। पर पिता जी तो पिता जी ठहरे!