बैचैन कलम
कोई वीर रस मे डूबी
कोई श्रृंगार रस में डूबी कलम है
कोई भय के अधीन
कोई कर रहा ऐलान है
कोई बिअछोह कोई वियोग
कोई किसी के दिल की तड़प को
कर रहा बयां है
तू क्यों दूर खड़ी बेचैन है
आ तू भी लिख कुछ
दूर खड़ी क्यों मौन है।
सिसक रही थी वह कलम
देख रही थी दूर खड़ी हो
उठ रहा था दिल में शोर
क्या लिखूँ कैसे लिखूँ
शब्दों से कैसे बयां करूँ
शौर्य को जिसमें समेट सकूँ
इन फौलादी सीनों की
ताकत को कैसे बयां करूँ
कैसे लिखूँ उन गीतों को
कैसे वो सरगम गाऊँ
जिसे देकर स्वर
देश पर अपने ये मिट गये
टूट गई इस कलम की नोक
इसलिये ये मौन है
मेरे वीर शहीदों आज
तुमको लिखने के लिये शब्द मेरे कम है
इसलिये आज ये कलम मौन है।।
— रजनी चतुर्वेदी (विलगैंया)