सामाजिक

वास्तविक होली विकारों को जलाना

होली का त्यौहार आते ही मन खुशियों से सराबोर होने लगता है। चारों तरफ रंगों के बादल कुलाचें भरते दिखाई देते हैं। धरती का परिधान बदल जाता है।
विभिन्न मीठे पकवानों की सुगंध से गली महौले भर जाते हैं। किशोर अपनी पिचकारियों की कारीगरी में लग जाते हैं व टोलियां बनाकर खुशियां बांटते हैं। होली पर्व हमें बीती बातों को ‘हो- ली’ यानी हो चुकी, बीत चुकी जैसा समझने की प्रेरणा देता है। इसलिए कहा गया है कि
“बीती ताहि बिसार दे,आगे की सुधि ले।”लेकिन अतीत को हम तभी भुला सकते हैं। जब हमारा वर्तमान उत्तम और समृद्ध हो। जिसमें उज्जवल भविष्य के चित्र समाए हों। इसके लिए हमें होली शब्द के एक अन्य अर्थ को भी समझना होगा। यहां पर होली से तात्पर्य अपने सभी अवगुणों या विकारों को जला देना व दिखावे से दूर होकर सच्चे हृदय से ईश्वर का हो जाना। हो-ली यानी अपना ‘मैं’ रूपी अहंकार ईश्वर के आगे समपिर्त कर स्वयं को निमित्त समझकर सांसारिक कर्त्तव्य करते हुए जीवन व्यतीत करना। जीवन को कर्मेन्दियों के भोग में नहीं, अपितु ईश्वर की प्राप्ति में लगा देना। प्रभु का हो जाने का भाव रखने से नम्रता आती है,अहंकार नष्ट होता है और हमारे भीतर मानवीय गुणों का विकास होता है। यह स्वयं को तथा संपर्क में आने वाले अन्य लोगों को भी सुख प्रदान करता है। इस तरह होली का आध्यात्मिक अर्थों में प्रयोग यह हुआ कि हम अपने मन, वचन और कर्म से पवित्र होकर ईश्वर का स्मरण करें। परोपकार करें।
इस तरह होली पर्व में  अवगुणों, विकारों एवम् नकारात्मक संस्कारों को भस्म कर दें। अपने आचार, विचार और व्यवहार को सभ्य, सुसंस्कृत और सुखदायी बनाएं। तभी भक्त प्रहलाद की भांति, ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण, निष्ठा और अच्छे कर्म हमारा कवच बन कर हमें कष्टदायी परिस्थितियों से बचाएंगे।आज लोग होली पर्व के इस आध्यात्मिक भावों को नहीं समझ पाते हैं। वे स्थूल रूप में खुशी का त्योहार मनाते हैं। वे खुद को और दूसरों को लाल-पीला-हरा जैसे जड़ रंगों में रंग कर हो-हल्ला करते हैं और उन्माद से नाचते हैं। लेकिन उन्होंने असली होली खेली ही नहीं। यदि हम सब होली का यह त्योहार आध्यात्मिक अर्थों में मनाते हैं, तब हम इस पृथ्वी पर आत्मिक प्रेम, पवित्रता, भाईचारे की संस्कृति को पुन: स्थापित कर सकते हैं। सतयुगी सभ्यता के नये संवत् का शुभारंभ कर सकते हैं।
विकारों को दूर करते हुए होली की हार्दिक शुभकामनाएं ।

निशा नंदिनी भारतीय 
तिनसुकिया, असम

*डॉ. निशा नंदिनी भारतीय

13 सितंबर 1962 को रामपुर उत्तर प्रदेश जन्मी,डॉ.निशा गुप्ता (साहित्यिक नाम डॉ.निशा नंदिनी भारतीय)वरिष्ठ साहित्यकार हैं। माता-पिता स्वर्गीय बैजनाथ गुप्ता व राधा देवी गुप्ता। पति श्री लक्ष्मी प्रसाद गुप्ता। बेटा रोचक गुप्ता और जुड़वा बेटियां रुमिता गुप्ता, रुहिता गुप्ता हैं। आपने हिन्दी,सामाजशास्त्र,दर्शन शास्त्र तीन विषयों में स्नाकोत्तर तथा बी.एड के उपरांत संत कबीर पर शोधकार्य किया। आप 38 वर्षों से तिनसुकिया असम में समाज सेवा में कार्यरत हैं। असमिया भाषा के उत्तरोत्तर विकास के साथ-साथ आपने हिन्दी को भी प्रतिष्ठित किया। असमिया संस्कृति और असमिया भाषा से आपका गहरा लगाव है, वैसे तो आप लगभग पांच दर्जन पुस्तकों की प्रणेता हैं...लेकिन असम की संस्कृति पर लिखी दो पुस्तकें उन्हें बहुत प्रिय है। "भारत का गौरव असम" और "असम की गौरवमयी संस्कृति" 15 वर्ष की आयु से लेखन कार्य में लगी हैं। काव्य संग्रह,निबंध संग्रह,कहानी संग्रह, जीवनी संग्रह,बाल साहित्य,यात्रा वृत्तांत,उपन्यास आदि सभी विधाओं में पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। मुक्त-हृदय (बाल काव्य संग्रह) नया आकाश (लघुकथा संग्रह) दो पुस्तकों का संपादन भी किया है। लेखन के साथ-साथ नाटक मंचन, आलेखन कला, चित्रकला तथा हस्तशिल्प आदि में भी आपकी रुचि है। 30 वर्षों तक विभिन्न विद्यालयों व कॉलेज में अध्यापन कार्य किया है। वर्तमान में सलाहकार व काउंसलर है। देश-विदेश की लगभग छह दर्जन से अधिक प्रसिद्ध पत्र- पत्रिकाओं में लेख,कहानियाँ, कविताएं व निबंध आदि प्रकाशित हो चुके हैं। रामपुर उत्तर प्रदेश, डिब्रूगढ़ असम व दिल्ली आकाशवाणी से परिचर्चा कविता पाठ व वार्तालाप नाटक आदि का प्रसारण हो चुका है। दिल्ली दूरदर्शन से साहित्यिक साक्षात्कार।आप 13 देशों की साहित्यिक यात्रा कर चुकी हैं। संत गाडगे बाबा अमरावती विश्व विद्यालय के(प्रथम वर्ष) में अनिवार्य हिन्दी के लिए स्वीकृत पाठ्य पुस्तक "गुंजन" में "प्रयत्न" नामक कविता संकलित की गई है। "शिशु गीत" पुस्तक का तिनसुकिया, असम के विभिन्न विद्यालयों में पठन-पाठन हो रहा है। बाल उपन्यास-"जादूगरनी हलकारा" का असमिया में अनुवाद हो चुका है। "स्वामी रामानंद तीर्थ मराठवाड़ा विश्व विद्यालय नांदेड़" में (बी.कॉम, बी.ए,बी.एस.सी (द्वितीय वर्ष) स्वीकृत पुस्तक "गद्य तरंग" में "वीरांगना कनकलता बरुआ" का जीवनी कृत लेख संकलित किया गया है। अपने 2020 में सबसे अधिक 860 सामाजिक कविताएं लिखने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। जिसके लिए प्रकृति फाउंडेशन द्वारा सम्मानित किया गया। 2021 में पॉलीथिन से गमले बनाकर पौधे लगाने का इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। 2022 सबसे लम्बी कविता "देखो सूरज खड़ा हुआ" इंडिया बुक रिकॉर्ड बनाया। वर्तमान में आप "इंद्रप्रस्थ लिटरेचर फेस्टिवल न्यास" की मार्ग दर्शक, "शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास" की कार्यकर्ता, विवेकानंद केंद्र कन्या कुमारी की कार्यकर्ता, अहिंसा यात्रा की सूत्रधार, हार्ट केयर सोसायटी की सदस्य, नमो मंत्र फाउंडेशन की असम प्रदेश की कनवेनर, रामायण रिसर्च काउंसिल की राष्ट्रीय संयोजक हैं। आपको "मानव संसाधन मंत्रालय" की ओर से "माननीय शिक्षा मंत्री स्मृति इरानी जी" द्वारा शिक्षण के क्षेत्र में प्रोत्साहन प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया जा चुका है। विक्रमशिला विश्व विद्यालय द्वारा "विद्या वाचस्पति" की उपाधि से सम्मानित किया गया। वैश्विक साहित्यिक व सांस्कृतिक महोत्सव इंडोनेशिया व मलेशिया में छत्तीसगढ़ द्वारा- साहित्य वैभव सम्मान, थाईलैंड के क्राबी महोत्सव में साहित्य वैभव सम्मान, हिन्दी साहित्य सम्मेलन असम द्वारा रजत जयंती के अवसर पर साहित्यकार सम्मान,भारत सरकार आकाशवाणी सर्वभाषा कवि सम्मेलन में मध्य प्रदेश द्वारा साहित्यकार सम्मान प्राप्त हुआ तथा वल्ड बुक रिकार्ड में दर्ज किया गया। बाल्यकाल से ही आपकी साहित्य में विशेष रुचि रही है...उसी के परिणाम स्वरूप आज देश विदेश के सभी प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ा जा सकता है...इसके साथ ही देश विदेश के लगभग पांच दर्जन सम्मानों से सम्मानित हैं। आपके जीवन का उद्देश्य सकारात्मक सोच द्वारा सच्चे हृदय से अपने देश की सेवा करना और कफन के रूप में तिरंगा प्राप्त करना है। वर्तमान पता/ स्थाई पता-------- निशा नंदिनी भारतीय आर.के.विला बाँसबाड़ी, हिजीगुड़ी, गली- ज्ञानपीठ स्कूल तिनसुकिया, असम 786192 [email protected]