ग़ज़ल
दुनिया सभी देखी यहाँ, इसके सिवा देखा कहाँ
ए जिंदगी जग में कटी, जग छोड़ अब जाना कहाँ ?
अज्ञान है इंसान मणि को मानते भगवान वह
कंकड़ नगीना को पहन भगवान को पाया कहाँ ?
भगवान का लेकर सहारा जो मचाया लूट है
बदनाम जो रब को किया, इंसान वो रोया कहाँ ?
विश्वास करते बारहा, डरकर अँधेरे से सभी
ईश्वर कहीं हैं मानते जाने नहीं डेरा कहाँ ?
वर्षों से’ हम करते रहे, अच्छे दिनों का इंतज़ार
एकेक कर सम्बत गए अच्छा अभी आया कहाँ ?
भोली सभी जनता ने’ की विश्वास पंडित को यहाँ
सब दान ईश्वर वास्ते, रब ने लिए देखा कहाँ ?
पण्डे पुजारी सब को’ई कहते मुहब्बत से रहो
पण्डे पुजारी को सभी कुचला हुआ प्यारा कहाँ ?
सूरज तपन पातक ज्वलन, ’काली’ हुआ बेहाल जब
वो ढूंढ़ता रब की कृपा, ठंडक भरा साया कहाँ ?
कालीपद ‘प्रसाद’