मेरा रंग दे बसंती चोला
चाह नहीं मैं पन्नों पर अंकित हो इठलाऊं,
चाह नहीं मैं सात सुरों में सजकर इतराऊं,
चाह नहीं मैं काव्य गोष्ठी में सुनाया जाऊं,
चाह नहीं मैं होठों पर खुशी बन मुस्काऊं।
चाह नहीं मैं पुरस्कार पाने हेतु ललचाऊं,
चाह नहीं मैं आंसू बनकर लुढ़क जाऊं,
चाह नहीं मैं पाठशाला के प्रार्थना में गाया जाऊं,
चाह नहीं मैं चुनावी माहौल में रंग जमाऊं।
चाह नहीं मैं गली गली में बजकर मन बहलाऊं,
मुझे गा देना ऐ वीर जवानों उस पथ पर,
शहीद हुए भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु,
भारत मां के लिए जहां पर फांसी चढ़कर।
भुला मत देना उनको मेरे भारतवासियों,
बिसरा मत देना तुम उनकी बलिदानी,
ऐसे वीर सपूतों के लिए दो आंसू बहा देना
तुम्हारे सुख के लिए जिसने लूटा दी जवानी।
पूर्णतः मौलिक-ज्योत्स्ना पाॅल।