बेपनाह इश्क़
बेपनाह इश्क़ समंदर के मानिंद,
अंतहीन सफर अंतहीन रास्ते …
सरसराहट सी भर देता मन के अंदर ,
जाने कब ज्वार भाटे का अंतर ।
बुत बन चुके जिस्म को पिघला देता
रूह की सच्ची इबादत का खंजर ।
भीगी पलकों के साये में निहारते
दो नैना, देखकर दर्द का अजीब मंजर
बंजारों जैसी जिंदगी बसेरा है डर,
कब किस पल आ जाये मौत का बुलाबा ओ हमसफर ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़