कविता
रिश्तों को
जान पहचान की सीमाओं बाँध दिया
हंसी में अपने आंसुओं को छुपा लिया
जज़्बातों को मौन में छुपाया है
कह दूँ भी तो सुनेगा कौन
सुन ले तो मेरे संग रोयेगा कौन
ये दुनिया का मेला है
जहाँ आया अकेले तू, जायेगा भी अकेला है
साथ कुछ लाया नहीं, और ले भी क्या जायेगा…
— सुमन रूहानी