तुम्हारा एक नाम रखूं ?
तुम्हारा
एक नाम रखूं ?
क्या नाम रखूं
तुम्हारा !
प्रेम !
नहीं तुम्हारा नाम प्रेम नहीं !
वो प्रेम ही क्या
जो छुपाया जाये।
नफरत !
नहीं नफरत भी नहीं !
मेरे शब्दकोष में
यह शब्द ही नहीं है।
इंतज़ार !
नहीं इंतज़ार भी नहीं !
साथ रहने वालों का
कैसा इंतज़ार।
धोखा !
हाँ तुम धोखा ही हो ,
छलिया हो ,
भ्रम ही तो हो
यही नाम रखूंगी तुम्हारा।
जिक्र होगा जब कभी
धोखे का
तुम्हारा ही नाम आएगा
भ्रम में रहेगा सारा संसार
और हर बार छला जायेगा।
आपकी कविता जिंदगी के एक सत्य को व्यक्त करती है. प्रेम के नाम पर धोखा आज आम हो गया है. आज सच्चा प्रेम गायब है, उसके नाम पर बस छलावा और शारीरिक आकर्षण है.
सुन्दर कविता के लिए बधाई. आगे भी आपसे ऐसी रचनाओं की आशा है.
हार्दिक धन्यवाद
किसी चीज़ को अच्छी कहने के लिए कहेंगे , it is vikid!! सौरी कुछ मिस हो गिया था .
भाई साहब, अगर कोई कमेंट अधुरा रह जाये या गलत हो जाये तो उसे edit करके सही कर सकते हैं. इसके लिए उसके ठीक नीचे बटन होता है.
उपासना जी , बहुत अच्छी कविता . पियार में धोका , बेफाई छलिया जैसे शब्द उम्र भर सुनता आ रहा हूँ . शाएद यह शब्द पियार के कोष में हसीन बन गए है जैसे अंग्रेजी वाले किसी चीज़ को कहेंगे , it is vikid!!
🙂 🙂 आभार
जिक्र होगा जब कभी
धोखे का
तुम्हारा ही नाम आएगा
भ्रम में रहेगा सारा संसार
और हर बार छला जायेगा।
वाह क्या बात है उपासना जी।
बहुत शुक्रिया जी
धन्यवाद उपासना जी