जीवन
रविवार की सुबह आराम का दिन,आमतौर पर रविवार की सुबह मेरा देर तक सोने का ही प्रोग्राम रहता है। लेकिन इस रविवार को मेरी नींद जल्दी खुल गई।कोई काम नहीं था इसलिए बाहर घूमने का मन किया और मैं बाहर की तरफ चल पड़ा।
मेरे घर के पास ही शनिवार को सब्जीमंडी का बाजार लगता है जो शनि बाजार के नाम से काफी प्रचलित है।घर से जैसे मैं निकला अचानक मेरी नजर चार पाँच छोटे-छोटे बच्चों पर गई,जो शायद कूड़ा चुगने वाले थे।
वो छोटे बच्चे सब्जी मंडी के पास सड़क पर फैंकी गई सब्जियों में से कुछ अच्छी सब्जियां छाट रहे थे अक्सर लोग या खुद सब्जी वाले ही उन्हें फेक देते है। उन बच्चों को यह करता देख कर मेरा मन अचानक व्याकुल हो गया कि ऐसा क्यों कर रहे हैं।
मैंने उनके पास जाकर उनसे पूछा बच्चो ये क्या कर रहे हो आप लोग, अचानक उन बच्चों के बीच में से एक 11 या 12 साल के बच्चे की जो लगभग मेरी छोटी लड़की के बराबर है,आवाज आई अंकल कल रात को बाजार लगता है और बहुत से लोग बहुत से लोग खराब सब्जी समझकर कुछ सब्जियों को फेंक देते हैं।
हम उन्हीं फैंकी हुई सब्जियों में से और फलों में से अपने लिए छाट रहे हैं, कम से कम उन सब्जियों में से हमें भी कभी कभी फलों का और सब्जियों का खाने का सुख प्राप्त हो जाता है।
उस बच्चे की इन बातों से मैं लगभग मौन से हो गया मेरे पास उनसे कहने के लिए कुछ भी नही था और अपने मन की व्याकुलता लिए हुए मैं धीरे धीरे घूमने का अपना कार्यक्रम छोड़ कर घर वापस आ गया।
कदम आगे चल ही नही पा रहे थे,छोटे छोटे मासूम बच्चो की पढ़ने लिखने की उम्र में इस प्रकार जीवन की छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने में लगा देखकर मन कुछ निराश सा था।
ना जाने हम कौन से विकास की बाते करते है जहाँ आज भी देश का बहुत बड़ा वर्ग अपनी छोटी छोटी जरूरतों को पूरा करने के मासूम बच्चो को भी मजदूरी कराने के लिए मजबूर है।