लघुकथा – खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे
रीमा नये नोट बदली दिनों में दो हज़ार के दो नोट बैक से बदलवाकर लेकर आई थी| अभी दो हज़ार के नये नोट आने ही शुरू हुये थे| आफिस की उसकी सहयोगीयों ने देखने की इच्छा ज़ाहिर की बोली, “रीमा ज़रा हमें भी दिखाना कैसा रंग और डिजाईन का नोट है| चलो हम भी अब बैंक से जाकर लेकर आते हैं|” रीमा ने दोनों हाथ आगे कर दो दो हज़ार के दो नोट दिखा दिए| कुंती ने नोट खींच पकड़ कहा, “ये तो नकली सा लगता है, इसे असली कौन कहेगा और पैसे भी ज़ल्दी अधिक खर्च होंगे| नोट टूटा और कब खर्च हुआ पाता भी नहीं चलता!” सब हँसती और सोचती सी अपने अपने काम में लग गईं| रीमा को तभी आफिस के मैनेजर ने किसी काम से बुला लिया और उसका काफी समय वहीँ लग गया| वापिस आकर आफिस की छुट्टी के समय रीमा ने पर्स में देखा तो स्तव्ध रह गई| दो हज़ार का एक नोट ही पड़ा था, दूसरा गायब था| पहले सोचा अंदर ही होगा पर न जाने क्या ख्याल आया और दोबारा से सारा पर्स देखा और पाया के नोट तो एक ही रह गया था| ये बात सबको पता चल गई| आफिस के मैनेजर ने रीमा को सबकी तलाशी लेने को कहा| आफिसर बोंले, “सारे आफिस में इकट्ठे हो जाओ, रीमा सबके पर्स और जेबें देखो|” तलाशी ली, अंत में रीमा कुंती की तलाशी ले ही रही थी तो कुंती ने चुपके से नोट रीमा के हाथ में थमाया और बोली, “गलती से मेरे पास रह गया, तुझे कल सारी बात बताउंगी|” सारा स्टाफ हैरान था और कुंती को घूरते देख रहा था| कुंती बगलों झांक रही अपनी शर्मिंदगी छिपाने की कोशिश कर रही थी| इसे कहते हैं-खिसियानी बिल्ली खंभा नोचे ।’
रेखा मोहन २०/४/१९